Jump to content
फॉलो करें Whatsapp चैनल : बैल आईकॉन भी दबाएँ ×
JainSamaj.World
  • entries
    335
  • comments
    11
  • views
    32,475

About this blog

जाने प्रथमाचार्य शान्तिसागरजी महराज को

Entries in this blog

डाकू का कल्याण - अमृत माँ जिनवाणी से - ८५

?     अमृत माँ जिनवाणी से - ८५      ?                  "डाकू का कल्याण"                    १९ जनवरी १९५६ को १०८ मुनि विमलसागर महाराज शिखरजी जाते हुए फलटण चातुर्मास के उपरांत सिवनी पधारे थे। उन्होंने बताया था कि -            आचार्यश्री शान्तिसागर महाराज आगरा के समीप पहुँचे। वहाँ जैन मंदिर में उनके पास एक डाकू रामसिंह पुरवाल वेष बदलकर गया। महाराज के पवित्र जीवन ने उस डाकू के ह्रदय में परिवर्तन कर दिया। उसने महाराज से अपनी कथा कहकर क्षमा याचना की तथा उपदेश माँगा।          

Abhishek Jain

Abhishek Jain

रसना इंद्रिय का जय - अमृत माँ जिनवाणी से - ८४

?     अमृत माँ जिनवाणी से - ८४     ?              "रसना इन्द्रिय का जय"                 नसलापुर चातुर्मास में यह चर्चा चली कि- "महाराज ! आप दूध, चावल तथा जल मात्र क्यों लेते हैं? क्या अन्य पदार्थ ग्रहण करने योग्य नहीं हैं।"                   महाराज ने कहा- "तुम आहार में जो वस्तु देते हो, वह हम ले लेते हैं। तुम अन्य पदार्थ नहीं देते, अतः हमारे न लेने की बात ही नहीं उत्पन्न होती है।"                  दूसरे दिन महाराज चर्या को निकले। दाल, रोटी, शाक आदि सामग्री उनको अर्पण क

Abhishek Jain

Abhishek Jain

मिट्टी के बर्तन पर नारियल का नियम - अमृत माँ जिनवाणी से - ८३

?     अमृत माँ जिनवाणी से - ८३     ?     "मिट्टी के बर्तन पर नारियल का नियम"                       आचार्य महाराज ने कोन्नूर में वृत्ति परिसंख्यान तप प्रारम्भ किया था। उनकी प्रतिज्ञा के अनुसार योग न मिलने से महाराज के छह उपवास हो गये। समाज के व्यक्ति सतत चिंतित रहते थे, जिस प्रकार आदिनाथ भगवान को आहार न मिलने पर उस समय का भक्त समाज चिंतातुर रहा था। सातवें दिन लाभांतराय का विशेष क्षयोपशम होने से एक गरीब गृहस्थ भीमप्पा के यहाँ गुरुदेव को अनुकूलता प्राप्त हो गई।                    

Abhishek Jain

Abhishek Jain

प्रतिभा द्वारा प्रभावना - अमृत माँ जिनवाणी से - ८२

☀इस प्रसंग कोई पढ़कर आपको आचार्यश्री की प्रतिभा व् धर्म प्रभावना की जानकारी मिलेगी साथ ही वर्तमान में हम सभी को भी धर्म के सम्बन्ध में परिस्थिति वश कैसे विवेक रखना चाहिए यह सीखने मिलेगा। ?     अमृत माँ जिनवाणी से - ८२     ?            "प्रतिभा द्वारा प्रभावना"                      एक बार आचार्य महाराज हुबली पहुँचे। वहाँ अन्य संप्रदाय के साधु विद्यमान थे। उनके संघनायक सिद्धारूढ़ स्वामी लिंगायत साधु महान विद्वान् थे। आचार्यश्री शान्तिसागरजी महाराज की सर्वत्र श्रेष्ठ साधु के रूप

Abhishek Jain

Abhishek Jain

शिष्य को गुरुत्व की प्राप्ति - अमृत माँ जिनवाणी से - ८१

☀इस प्रसंग को सभी अवश्य ही पढ़ें। ?     अमृत माँ जिनवाणी से - ८१     ?          "शिष्य को गुरुत्व की प्राप्ति"                        पूज्य आचार्यश्री शान्तिसागरज़ी महराज का संस्मरण बताते हुए पूज्य मुनिश्री १०८ आदिसागरजी महाराज ने बताया कि-                                 आचार्य शान्तिसागरजी महाराज ने (मुनि देवेन्द्रकीर्ति महाराज) से क्षुल्लक दीक्षा ली थी। देवप्पास्वामी सन् १९२५ में श्रवणबेलगोला में थे, उस समय महाराज भी वहाँ पहुंचे।                   देवप्पा स्वामी ने

Abhishek Jain

Abhishek Jain

?विपत्ति में दृढ़वृत्ति - अमृत माँ जिनवाणी से - ८०

?     अमृत माँ जिनवाणी से - ८०     ?                "विपत्ति में दृढ़वत्ति"                      एक बार गजपंथा में पंचकल्याणक महोत्सव के समय मैंने महाराज से पूंछा था, "महाराज सर्पकृत भयंकर उपद्रव के होते हुए, आपकी आत्मा में घबराहट क्यों नहीं होती है, जबकि सर्प तो साक्षात् मृत्युराज ही है?"                    महाराज बोले, विपत्ति के समय हमें कभी भी भय या घबराहट नहीं हुई। सर्प आया और शरीर पर लिपटकर चला गया, इसमे महत्व की बात क्या है?"                      मैंने कहा, "उस मृत्यु

Abhishek Jain

Abhishek Jain

आकर्षण - अमृत माँ जिनवाणी से - ७९

?     अमृत माँ जिनवाणी से - ७९     ?                       "आकर्षण"                              २४ नवम्बर, १९५५ में लेखक दिवाकरजी पूज्य मुनिश्री १०८ धर्मसागर जी महाराज के समीप गए। उस समय वह जबलपुर के समीप बरगी में विराजमान थे।                     पूज्य १०८ धर्मसागरजी महाराज ने आचार्यश्री शान्तिसागरजी महाराज का संस्मरण सुनाते हुए कहा था- "मै उस समय छोटा था। मैंने महाराज के यरनाल में दर्शन किये थे। वे ऐलक थे। यरनाल में उनकी मुनि दीक्षा हुई थी। बाद में महाराज का कोन्नूर में चात

Abhishek Jain

Abhishek Jain

शरीर नौकर है - अमृत माँ जिनवाणी से - ७८

?     अमृत माँ जिनवाणी से - ७८     ?                  "शरीर नौकर है"                      मुनिश्री वर्धमान सागर जी महाराज ने अपने संस्मरण में आचार्यश्री शान्तिसागर जी महाराज के बारे में बताया कि -           "उनकी दृष्टि थी कि यह शरीर नौकर है। नौकर को भोजन दो और काम लो। आत्मा को अमृत-पान कराओ।"                भादों सुदी त्रयोदशी को महाराज ने समयसार प्रवचन में कहा था- "द्रव्यानुयोग के अभ्यास के लिए प्रथमानुयोग सहायक होता है। उसके अभ्यास से द्रव्यानुयोग कठिन नहीं पड़ता।" 

Abhishek Jain

Abhishek Jain

शक्ति की परीक्षा - अमृत माँ जिनवाणी से - ७७

?     अमृत माँ जिनवाणी से - ७७     ?                  "शक्ति की परीक्षा"                आचार्य शान्तिसागरजी महाराज के गृहस्थ जीवन के बड़े भाई पूज्य वर्धमानसागरजी महाराज ने उनके पूर्व समय का एक प्रसंग बताया-                "एक बढ़ई ने भोज में आकर शक्ति परीक्षण हेतु एक लंबा खूंटा गाड़ा था। वह गाँव में किसी से ना उखड़ा, उसे नागपंचमी के दिन महाराज ने जरा ही देर में उखाड़ दिया था और चुप चाप घर आ गए थे।               जब खूंटा उन्होंने उखाड़ा तब मैंने कहा था- "ऐसा काम नहीं करना। चोट

Abhishek Jain

Abhishek Jain

आचार्यश्री के घरेलू जीवन के संस्मरण - अमृत माँ जिनवाणी से - ७६

?     अमृत माँ जिनवाणी से - ७६     ?     "आचार्यश्री के घरेलु जीवन के संस्मरण"                   आचार्यश्री शान्तिसागरजी के गृहस्थ जीवन के बड़े भाई वर्धमान सागरजी महाराज ने आचार्य महाराज के बारे में इस प्रकार संस्मरण बतलाये थे:              "मैंने उसे गोद में खिलाया, गाड़ी में खिलाया। वह हमारे साथ-साथ खेलता था। बहुत शांत था। रोता नहीं था। मैंने उसे रोते कभी नहीं देखा, न बचपन में और न बड़े होने पर। उसे कपडे बहुत अच्छे पहिनाय जाते थे। सब लोग उसे अपने यहाँ ले जाया करते थे। हमारा घ

Abhishek Jain

Abhishek Jain

ओरसा ग्राम में दंश मसक परिषह - अमृत माँ जिनवाणी से - ७५

?     अमृत माँ जिनवाणी से - ७५     ?       "ओरसा ग्राम में दंश-मशक परिषय"                  आचार्यश्री शान्तिसागरजी महाराज का संघ सिद्ध क्षेत्र कुण्डलपुर के दर्शन के उपरांत दमोह आया, वहाँ दर्शन के उपरांत, वह ओरसा ग्राम गया। वहाँ एक विशिष्ट घटना हो गई।                    आचार्य महाराज को वहाँ कष्ट ना हो, इसलिए दमोह के सेठजी ने घर को साफ कराया था। महाराज के आने पर उन्होंने कहा, "महाराज, "यह घर आपके लिए ही हमने साफ करवाया है।"                     विशेषकर अपने निमित्त से उद्

Abhishek Jain

Abhishek Jain

अनिष्ट का संकेत - अमृत माँ जिनवाणी से - ७५

?     अमृत माँ जिनवाणी से - ७४     ?                  "अनिष्ट का संकेत"                  एक बार सन् १९४८ की जनवरी में आचार्यश्री शान्तिसागरजी  महाराज ने विहार करते हुए शिष्य मण्डली से कहा था, "हमारा ह्रदय कहता है कि देश में कोई भयंकर अनिष्ट शीघ्र ही होगा।"                 महाराज के इस कथन के दो चार रोज बाद गोडसे ने गाँधी जी की निर्मम हत्या की थी। उस समय सब बोले, "महाराज के ज्ञान में भावी घटनाओं की विशेष सूचना प्रायः स्वतः आ जाया करती है।" ?  स्वाध्याय चारित्र चक्रवर्

Abhishek Jain

Abhishek Jain

पिपरौद के रास्ते में सर्पराज का आतंक - अमृत माँ जिनवाणी से - ७३

?     अमृत माँ जिनवाणी से - ७३     ?   "पिपरौद के रास्ते में सर्पराज का आतंक"                      आचार्यश्री शान्तिसागरजी महाराज ने ससंघ बिलहरी से पिपरौद ग्राम की ओर प्रस्थान किया, तो एक यात्री ने कहा- "महाराज, रास्ते में एक भीषण सर्प है, वह जाने वालों का पीछा करता है, अतः वह रास्ता खतरनाक है।"                    सब लोग चिंता में पड़ गए। लोग यही चाहते थे कि महाराज दूसरे रास्ते से चलने की आज्ञा दें। क्रुद्ध सर्प के रास्ते पर चलकर प्राणों के साथ खिलवाड़ करने से लोग डरते थे, किन

Abhishek Jain

Abhishek Jain

राहुरी में जलप्रलय से रक्षा - अमृत माँ जिनवाणी से - ७२

?     अमृत माँ जिनवाणी -  ७२     ?           "राहुरी में जलप्रलय से रक्षा"        बारामती के गुरुभक्त सेठ चंदूलाल सराफ ने एक घटना सुनाई।                     महाराष्ट्र राज्य के प्रसिद्ध शहर अहमदनगर की तरफ महाराज का विहार हो रहा था। रास्ते में राहुरी स्टेशन मिलता है। संध्या हो चली थी। उस समय हम पास के ग्राम में रहना चाहते थे, किन्तु महाराज ने हम लोगो की प्रार्थना की परवाह नहीं की और वे दूर तक आगे बढ़ गये। लाचार होकर हमको भी उनकी सेवार्थ हमको भी वहाँ पहुँचना पड़ा।          

Abhishek Jain

Abhishek Jain

बिलहरी में चर्मकरों द्वारा मांसाहार त्याग - अमृत माँ जिनवाणी से - ७१

?     अमृत माँ जिनवाणी से - ७१     ? "बिलहरी में चर्मकारों द्वारा माँसाहार त्याग"                  सन् १९२८ में शिखरजी की वंदना के उपरांत आचार्यश्री शान्तिसागरजी महाराज के पावन चातुर्मास का सौभाग्य मिला कटनी (म.प्र) वासियों को। कटनी चातुर्मास के उपरांत महाराज ने वहाँ से अगहन कृष्णा एकम को बिहार किया। दूसरे दिन आचार्यश्री बिलहरी ग्राम पहुँचे। वहाँ संघ का दो दिन वास्तव्य रहा।                    आचार्य महाराज के श्रेष्ट आध्यात्मिक जीवन की प्रसद्धि हो चुकी थी। अतः उस ग्राम में स

Abhishek Jain

Abhishek Jain

मकोड़े का उपसर्ग - अमृत माँ जिनवाणी से - ७०

?     अमृत माँ जिनवाणी से - ७०     ?               "मकोड़े का उपसर्ग"                  आचार्यश्री शान्तिसागरजी महाराज के बारे में नेमिसागरज़ी महाराज संस्मरण में बताया-                   "कोन्नूर के जंगल में महाराज बाहर बैठकर धूप में  सामायिक कर रहे थे। इतने में एक बड़ा कीड़ा-मकोड़ा उसके पास आया और उनके जांघों के बीच में चिपटकर वहाँ का रक्त चूसना प्रारम्भ कर दिया। रक्त बहता जाता था, किन्तु महाराज डेढ़ घंटे पर्यन्त अविचलित ध्यान करते रहे।"                        नेमिसागरजी ने ब

Abhishek Jain

Abhishek Jain

उड़ने वाला सर्प द्वारा उपद्रव में भी स्थिरता - अमृत माँ जिनवाणी से - ६९

?     अमृत माँ जिनवाणी से -६९     ?  "उडने वाले सर्प द्वारा उपद्रव मे भी स्थिरता"                  तारीख २३-१०-५१ को हम महाराज के साथ रहने वाले  महान तपस्वी निर्ग्रन्थ मुनि १०८ श्री नेमिसाग़रजी के पास बारामती में पहुँचे और आचार्यश्री शान्तिसागर महाराज के विषय में कुछ प्रश्न पूंछने लगे। उनसे ज्ञात हुआ कि  वे लगभग २८ वर्ष से पूज्यश्री के आश्रय मे रहे हैं।                 कोन्नूर में सर्पकृत परिषह के विषय में जब हमने पूंछा, "तब वे बोले, "कोन्नूर में वैसे सात सौ से अधिक गुफाएँ है

Abhishek Jain

Abhishek Jain

विचित्र घटना एवं भयंकर प्रायश्चित ग्रहण - अमृत माँ जिनवाणी से - ६८

?     अमृत माँ जिनवाणी से - ६८     ? "विचित्र घटना एवं भयंकर प्रायश्चित ग्रहण"                     निर्ग्रन्थ रूप में आचार्यश्री शान्तिसागरजी महाराज का दूसरा चातुर्मास नसलापुर में व्यतीत कर विहार करते हुए ऐनापुर पधारना हुआ। यहाँ एक विशेष घटना हो गई।                    शास्त्र में मुनिदान की पद्धति इसी प्रकार कही गई है कि गृहस्थ अपने घर में जो शुद्ध आहार बनाते हैं, उसे ही वह महाव्रती मुनिराज को आहार के हेतु अर्पण करें। दूसरे के घर की सामग्री लाकर कोई दे, तो ऐसा आहार मुनियों क

Abhishek Jain

Abhishek Jain

जयपुर में भयंकर संकट में मेरुवत स्थिरता - अमृत माँ जिनवाणी से - ६७

?     अमृत माँ जिनवाणी से -  ६७     ?  "जयपुर में भयंकर संकट में मेरुवत स्थिरता"                 जयपुर में ख़ानियो की नशिया में आचार्यश्री शान्तिसागरजी महाराज ने निवास किया था।                  एक दिन नशिया के द्वार को किसी भाई ने भूल कर बंद कर दिया, पवन पर्याप्त मात्रा में नहीं पहुँचने से महाराज को दम घुटने से मूर्छा आ गई।                     उसके पूर्व में चिल्लाकर दरवाजा खुलवा लेना या बाहर जाने के लिए हो हल्ला करना उनकी आत्मनिष्ठा पूर्ण पद्धति ने प्रतिकूल थी।          

Abhishek Jain

Abhishek Jain

उद्धार का भाव जीवन को पवित्र बनाना - अमृत माँ जिनवाणी से - ६६

?     अमृत माँ जिनवाणी से - ६६     ?  "उद्धार का भाव जीवन को पवित्र बनाना"                  आचार्यश्री शान्तिसागरजी महाराज ने अपने उपदेश द्वारा अनेक हरिजनों का सच्चा उद्धार किया है। पाप प्रवृतियों का त्याग ही आत्मा को ऊँचा उठाता है। महाराज के प्रति भक्ति करने वाले बहुत से चरित्रवान हरिजन मिलेंगे।                     उन्होंने अपनी करुणा वृत्ति द्वारा सभी दीन दुखी जीवो को सत्पथ पर लगाया है। आठ वर्ष पूर्व हमे शेड़वाल में आचार्य महाराज का व्रत धारक शुद्र शिष्य मिला था। उसने मद्य,

Abhishek Jain

Abhishek Jain

हरिजनों पर प्रेम दृष्टि - अमृत माँ जिनवाणी से - ६५

?     अमृत माँ जिनवाणी से - ६५     ?                "हरिजनों पर प्रेम दृष्टि"                एक बार आचार्यश्री शान्तिसागर जी महाराज से पूंछा- "महाराज हरिजनों के उद्धार के विषय में आपका क्या विचार है?                   महाराज कहने लगे- "हमें हरिजनों को देखकर बहुत दया आती है। हमारा उन बेचारों पर रंचमात्र भी द्वेष नहीं है।                         गरीबी के कारण वे बेचारे अपार कष्ट भोगते हैं। हम उनका तिरस्कार नहीं करते हैं। हमारा तो कहना तो यह है कि उन दीनों का आर्थिक कष्ट दू

Abhishek Jain

Abhishek Jain

धर्म में अरुचि क्यों ? - अमृत माँ जिनवाणी से - ६४

?     अमृत माँ जिनवाणी से - ६४     ?                "धर्म में अरुचि क्यों?"                     आचार्यश्री शान्तिसागरजी महाराज ने उनके शिष्य मुनिश्री वीरसागरजी महाराज को आचार्य पद प्रदान किया था।                 एक बार आचार्यश्री वीरसागर जी महाराज से प्रश्न किया गया- "महाराज ! महाराज आजकल अन्य लोगो की जैनधर्म में रुचि नहीं है। जैनी क्यों अल्प संख्या वाले है?                      उन्होंने कहा - "जौहरी की दुकान में बहुत थोड़े ग्राहक रहते हैं, फिर भी उसका अर्थलाभ विपुल मात्

Abhishek Jain

Abhishek Jain

मुनिमार्ग के सच्चे सुधारक - अमृत माँ जिनवाणी से - ६३

?     अमृत माँ जिनवाणी से - ६३     ?           "मुनि मार्ग के सच्चे सुधारक"                 आचार्यश्री शान्तिसागरजी महाराज के संबंध में आचार्यश्री वीरसागरजी महाराज कहने लगे- "आचार्य महाराज ने हम सब का अनंत उपकार किया है। उन्होंने इस युग में मुनिधर्म का सच्चा स्वरूप आचरण करके बताया था।                     उनके पूर्व उत्तर में तो मुनियों का दर्शन नहीं था और दक्षिण में जहाँ कहीं मुनि थे, उनकी चर्या विचित्र प्रकार की थी। वे दिगम्बर मुनि कहलाते भर थे, किन्तु ऊपर से एक वस्त्र ओढ़े

Abhishek Jain

Abhishek Jain

जगत के गुरु - अमृत माँ जिनवाणी से - ६२

?     अमृत माँ जिनवाणी से - ६२     ?                     "जगत के गुरु"                        आचार्यश्री शान्तिसागरजी महाराज के बारे में आचार्यश्री वीरसागरजी महाराज संस्मरण में कहने लगे- "उनकी वाणी में कितनी मिठास, कितना युक्तिवाद और कितनी गंभीरता थी, यह हम व्यक्त नहीं कर सकते।                  महाराज, जब आलंद (निजाम राज्य में) पधारे, तब उनका उपदेश वहाँ मुस्लिम जिलाधीश के समक्ष हुआ।                उस उपदेश को सुनकर वह अधिकारी और उनके सरकारी मुस्लिम कर्मचारी इतने प्रभावित

Abhishek Jain

Abhishek Jain

गंभीर प्रकृति - अमृत माँ जिनवाणी से - ६१

?    अमृत माँ जिनवाणी से - ६१    ?                  "गंभीर प्रकृति"                 आचार्यश्री शान्तिसागरजी महाराज के शिष्य आचार्यश्री वीर सागरजी महाराज ने अपने गुरु आचार्यश्री शान्तिसागरजी महाराज के संस्मरण में बताया कि-                   आचार्यश्री शान्तिसागरजी महाराज आहार में केवल दूध और चावल लेते थे। अत्यंत बलवान और सुदृढ शरीर में वह भोज्य पदार्थ थोड़े ही देर में पच जाता था, फिर भी महाराज ने यह कभी नही कहा कि गृहस्थ लोग विचारहीन हैं, एक ही पदार्थ को देते हैं।        

Abhishek Jain

Abhishek Jain

×
×
  • Create New...