डाकू का कल्याण - अमृत माँ जिनवाणी से - ८५
? अमृत माँ जिनवाणी से - ८५ ?
"डाकू का कल्याण"
१९ जनवरी १९५६ को १०८ मुनि विमलसागर महाराज शिखरजी जाते हुए फलटण चातुर्मास के उपरांत सिवनी पधारे थे। उन्होंने बताया था कि -
आचार्यश्री शान्तिसागर महाराज आगरा के समीप पहुँचे। वहाँ जैन मंदिर में उनके पास एक डाकू रामसिंह पुरवाल वेष बदलकर गया। महाराज के पवित्र जीवन ने उस डाकू के ह्रदय में परिवर्तन कर दिया। उसने महाराज से अपनी कथा कहकर क्षमा याचना की तथा उपदेश माँगा।
महाराज ने उससे कहा- "तुम णमोकार मंत्र को जपो।" णमोकार मंत्र जपते ही उस डाकू के तत्काल प्राणपखेरू उड़ गए। जीवन कितना क्षणिक है। क्षण भर में उसका कल्याण हो गया।
आचार्य विमलसागरजी महाराज ने कहा था- "स्व. आचार्य महाराज आगरा की तरफ पधारे थे। उनकी कृपा से हमें यज्ञोपवीत प्राप्त हुआ था, जो रत्नात्रय का लिंग है। उस रत्नात्रय के चिन्ह के निमित्त से आज मुझे निर्ग्रथ पदवी प्राप्त करने का सौभाग्य मिला। उनके संपर्क से परिणामों में अपूर्व उत्साह उत्पन्न होता था। आत्मकल्याण की ओर भाव बढ़ते थे।"
? स्वाध्याय चारित्र चक्रवर्ती ग्रथ का ?
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