आकर्षण - अमृत माँ जिनवाणी से - ७९
? अमृत माँ जिनवाणी से - ७९ ?
"आकर्षण"
२४ नवम्बर, १९५५ में लेखक दिवाकरजी पूज्य मुनिश्री १०८ धर्मसागर जी महाराज के समीप गए। उस समय वह जबलपुर के समीप बरगी में विराजमान थे।
पूज्य १०८ धर्मसागरजी महाराज ने आचार्यश्री शान्तिसागरजी महाराज का संस्मरण सुनाते हुए कहा था- "मै उस समय छोटा था। मैंने महाराज के यरनाल में दर्शन किये थे। वे ऐलक थे। यरनाल में उनकी मुनि दीक्षा हुई थी। बाद में महाराज का कोन्नूर में चातुर्मास हुआ था। वह स्थान हमारे गाँव पाच्छापुर से दस मील पर था।
रविवार को हमारे स्कूल की छुट्टी रहती थी। उस दिन हम दस मील दौड़ते हुए महाराज के पास कोन्नूर जाया करते थे। उनके दर्शन के उपरांत शाम को लौटकर घर वापिस आते थे। महाराज के जीवन का आकर्षण इतना था कि उस समय बीस मील आना जाना कष्टप्रद नहीं लगता था।"
? स्वाध्याय चारित्र चक्रवर्ती ग्रन्थ का ?
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