जगत के गुरु - अमृत माँ जिनवाणी से - ६२
? अमृत माँ जिनवाणी से - ६२ ?
"जगत के गुरु"
आचार्यश्री शान्तिसागरजी महाराज के बारे में आचार्यश्री वीरसागरजी महाराज संस्मरण में कहने लगे- "उनकी वाणी में कितनी मिठास, कितना युक्तिवाद और कितनी गंभीरता थी, यह हम व्यक्त नहीं कर सकते।
महाराज, जब आलंद (निजाम राज्य में) पधारे, तब उनका उपदेश वहाँ मुस्लिम जिलाधीश के समक्ष हुआ।
उस उपदेश को सुनकर वह अधिकारी और उनके सरकारी मुस्लिम कर्मचारी इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने महाराज को साष्टांग प्रणाम किया और बोले- "महाराज, जैनो के ही गुरु नहीं हैं, ये तो जगत के गुरु हैं। हमारे भी गुरु हैं।"
आचार्य महाराज समय को देख सुंदर ढंग से इस प्रकार तत्व बतलाते थे कि शंका के लिए स्थान नहीं रहता था। मैंने पूछा- "उस भाषण में महाराज ने क्या कहा था?" शिवसागर महाराज बोले- "आचार्य महाराज ने देव, गुरु तथा शास्त्र का स्वरूप समझाया था।"
? स्वाध्याय चारित्र चक्रवर्ती ग्रंथ का ?
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