उड़ने वाला सर्प द्वारा उपद्रव में भी स्थिरता - अमृत माँ जिनवाणी से - ६९
? अमृत माँ जिनवाणी से -६९ ?
"उडने वाले सर्प द्वारा उपद्रव मे भी स्थिरता"
तारीख २३-१०-५१ को हम महाराज के साथ रहने वाले महान तपस्वी निर्ग्रन्थ मुनि १०८ श्री नेमिसाग़रजी के पास बारामती में पहुँचे और आचार्यश्री शान्तिसागर महाराज के विषय में कुछ प्रश्न पूंछने लगे। उनसे ज्ञात हुआ कि वे लगभग २८ वर्ष से पूज्यश्री के आश्रय मे रहे हैं।
कोन्नूर में सर्पकृत परिषह के विषय में जब हमने पूंछा, "तब वे बोले, "कोन्नूर में वैसे सात सौ से अधिक गुफाएँ हैं, किन्तु दो गुफा मुख्य हैं।
महाराज प्रत्येक अष्टमी, चौदस को गुफा में जाकर ध्यान करते थे। उस दिन उनका मौन रहता था। एक दिन की बात है कि वे गुफा में घुसे। उनके पीछे एक सर्प भी गुफा में चला गया। वह बड़ा चंचल था। वह सर्प उडान मारने वाला था। अनेक लोगो ने यह घटना देखी थी। जब लोग महाराज के समीप पहुँचते थे, तो वह सर्प महाराज की जंघाओं के बीच में छुप जाता था। लोगों के दूर होते ही वह इधर-उधर फिरकर उपद्रव करता था।"
मैंने पूंछा, "यह कब की बात थी?" उन्होंने कहा, "यह मध्यान की बात थी। वह सर्प तीन घंटे तक रहा, पश्चात् चला गया। लोग यदि साहस कर पकड़ लेते, तो इस बात का भय था कि कहीं वह क्रुद्ध होकर महाराज को काट ना दे। इससे किंकर्तव्यविमूढ़ हो जाते थे।"
? स्वाध्याय चारित्र चक्रवर्ती ग्रन्थ का ?
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