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मकोड़े का उपसर्ग - अमृत माँ जिनवाणी से - ७०


Abhishek Jain

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?     अमृत माँ जिनवाणी से - ७०     ?


              "मकोड़े का उपसर्ग"


                 आचार्यश्री शान्तिसागरजी महाराज के बारे में नेमिसागरज़ी महाराज संस्मरण में बताया-

                  "कोन्नूर के जंगल में महाराज बाहर बैठकर धूप में  सामायिक कर रहे थे। इतने में एक बड़ा कीड़ा-मकोड़ा उसके पास आया और उनके जांघों के बीच में चिपटकर वहाँ का रक्त चूसना प्रारम्भ कर दिया। रक्त बहता जाता था, किन्तु महाराज डेढ़ घंटे पर्यन्त अविचलित ध्यान करते रहे।"

                       नेमिसागरजी ने बताया कि वह उस समय गृहस्थ अवस्था में थे और चिंतित थे कि इस समय क्या किया जाय। यदि कीड़े को पकड़कर अलग करते, तो महाराज के ध्यान में विघ्न आएगा। अतः किंकर्तव्यविमूढ़ हो रहे थे।

                     उन्होंने यह भी कहा कि और भी छोटे-छोटे मकोड़े उस समय आते थे, उनको तो हम दूर कर देते थे किन्तु बड़े मकोड़े की बाधा को हम दूर नहीं कर सके। पुरुष चिन्ह से रक्त बहता था, किन्तु महाराज अपने अखंड ध्यान में पूर्ण मग्न थे।

?  स्वाध्याय चारित्र चक्रवर्ती ग्रन्थ का  ?

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