? अमृत माँ जिनवाणी से - १६० ?
"संयमी का महत्व"
संयमी पुरुषों की दृष्टि में संयम तथा संयमी का मूल्य रहा है। पूज्य आचार्यश्री शान्तिसागरजी महराज को भी संयम व् संयमी का बड़ा मूल्य रहा है।
एक दिन पूज्य शान्तिसागरजी महराज अपने क्षुल्लक शिष्य सिद्धसागर (भरमप्पा) से कह रहे थे- तेरे सामने मै चक्रवर्ती की भी कीमत नहीं करता। लोग संयम का मूल्य समझते नहीं हैं।
जो पेट के लिए भी दीक्षा लेते हैं, वे तप के प्रभाव से स्वर्ग जाते हैं, तून
☀जय जिनेन्द्र बंधुओं,
प्रस्तुत प्रसंग में पूज्य शान्तिसागरजी महराज एक गृहस्थ श्रावक को संबोधित कर रहे हैं। हम सभी यह पढ़कर यह अनुभव कर सकते है कि आचार्यश्री हम सभी को ही व्यक्तिगत रूप से यह बातें कह रहे हैं।
वास्तव में पूज्यश्री की यह देशना भी सभी श्रद्धावान श्रावकों के लिए ही है।
? अमृत माँ जिनवाणी से - १५९ ?
"शिष्य को हितोपदेश"
एक बार पूज्य आचार्यश्री शान्तिसागरजी महराज अपने एक भक
☀जय जिनेन्द्र बंधुओं,
प्रस्तुत प्रसंग, हम सभी श्रावकों अपने जीवन के सार्थकता हेतु आत्मध्यान के बारे में बताता है।
एक लंबे समय से प्रसंगों की श्रृंखला के माध्यम से हम सभी पूज्य शान्तिसागरजी महराज के जीवन चरित्र का दर्शन इस अनुभिति के साथ कर रहे हैं कि उनके जीवन को हम नजदीक से ही देख रहे हों।
आज के आत्मध्यान के पूज्यश्री के उपदेश के प्रसंग को इन्ही भावों के साथ हम सभी आत्मसात करें जैसे पूज्य शान्तिसागरजी महराज प्रत्यक्ष में हमारे कल्याण के लिए ही यह उपद
☀जय जिनेन्द्र बंधुओं,
प्रस्तुत प्रसंग में लेखक द्वारा सल्लेखनारत पूज्य शान्तिसागर महराज के साधना के अंतिम दिनों में उपदेशों को चिरकाल के लिए संरक्षित किए जाने के लिए, किए जाने वाले प्रयासों का मार्मिक उल्लेख किया है।
? अमृत माँ जिनवाणी से - १५७ ?
"मंगलमय भाषण की विशेष बात"
८ सितम्बर सन् १९५५ को सल्लेखनारत पूज्य आचार्य शान्तिसागरजी महराज का २६ वें दिन जो मंगलमय भाषण रिकार्ड हो सका, इसकी भी अद्भुत कथा है। नेता बनने वाले लोग कहते थे,
? अमृत माँ जिनवाणी से - १५६ ?
"हमारी कर्तव्य-विमुखता"
आज के राजनैतिक प्रमुखों के क्षण-क्षण की वार्ता किस प्रकार पत्रों में प्रगट होती है, वैसी यदि सूक्ष्मता से इस महामना मुनिराज की वार्ताओं का संग्रह किया होता, तो वास्तव में विश्व विस्मय को प्राप्त हुए बिना नहीं रहता।
पाप प्रचुर पंचमकाल में सत्कार्यों के प्रति बड़े-२ धर्मात्माओं की प्रवृत्ति नहीं होती है। वे कर्तव्य पालन में भूल जाते हैं।
कई वर्षों से मैं प्रमुख लोगों से, जैन मह
☀जय जिनेन्द्र बंधुओं,
प्रस्तुत कथन में लोकोत्तर व्यक्तित्व पूज्य शांतिसागरजी महराज को पुत्र के रूप में जन्म देनी वाली माँ का उल्लेख क्षुल्लिकाश्री पार्श्वमति माताजी ने किया है।
निश्चित ही एक परम् तपस्वी निर्ग्रंथराज को जनने वाली माँ के जीवन चरित्र को जानकर भी अद्भुत आनंद अनुभूति होना स्वाभाविक बात है। उनकी माँ की जीवन शैली को जाकर लगता है कि एक चारित्र चक्रवर्ती बनने वाले मनुष्य को जन्म देनी वाली माता का जीवन कैसा रहता होगा।
? अमृत माँ जिनवाणी से - १५५
? अमृत माँ जिनवाणी से - १५४ ?
"संघपति का महत्वपूर्ण अनुभव"
संघपति सेठ गेंदनमलजी तथा उनके परिवार का पूज्य आचार्यश्री शान्तिसागरजी महराज के संघ के साथ महत्वपूर्ण सम्बन्ध रहा है। गुरुचरणों की सेवा का चमत्कारिक प्रभाव , अभ्युदय तथा समृद्धि के रूप में उस परिवार ने अनुभव भी किया है।
सेठ गेंदनमलजी ने कहा था- "महराज का पुण्य बहुत जोरदार रहा है।हम महराज के साथ हजारों मील फिरे हैं, कभी भी उपद्रव नहीं हुआ है। हम बागड़ प्रान्त में रात भर गाड़ियों से चलते
? अमृत माँ जिनवाणी से - १५३ ?
"मार्मिक विनोद"
पूज्य आचार्यश्री शान्तिसागरजी महराज सदा गंभीर ही नहीं रहते थे। उनमे विनोद भी था, जो आत्मा को उन्नत बनाने की प्रेरणा देता था। कुंथलगिरि में अध्यापक श्री गो. वा. वीडकर ने एक पद्य बनाया और मधुर स्वर में गुरुदेव को सुनाया।
उस गीत की पंक्ति थी- "ओ नीद लेने वाले, तुम जल्द जाग जाना।"
उसे सुनकर महराज बोले- "तुम स्वयं सोते हो और दूसरों को जगाते हो। 'बगल में बच्चा, गाँव में टेर' -कितनी
? अमृत माँ जिनवाणी से - १५२ ?
"दिव्यदृष्टी"
पूज्य आचार्यश्री शान्तिसागरजी महाराज का राजनीति से तनिक भी सम्बन्ध नहीं था। समाचार-पत्रों में जो राष्ट्रकथा आदि का विवरण छपा करता है, उसे वे न पढ़ते थे, न सुनते थे। उन्होंने जगत की ओर पीठ कर दी थी।
आज के भौतिकता के फेर में फँसा मनुष्य क्षण-क्षण में जगत के समाचारों को जानने को विहल हो जाता है। लन्दन, अमेरिका आदि में तीन-तीन घंटों की सारे विश्व की घटनाओं को सूचित करने वाले बड़े-बड़े समाचार पत्र छप
? अमृत माँ जिनवाणी से - १५१ ?
"एकांतवास से प्रेम"
आचार्य महाराज को एकांतवास प्रारम्भ से ही प्रिय लगता रहा है। भीषण स्थल पर भी एकांतवास पसंद करते थे। वे कहते थे- "एकांत भूमि में आत्मचिंतन और ध्यान में चित्त खूब लगता है।"
जब महराज बड़वानी पहुँचे थे, तो बावनगजा(आदिनाथ भगवान की मूर्ति) के पास के शांतिनाथ भगवान के चरणों के समीप अकेले रात भर रहे थे। किसी को वहाँ नहीं आने दिया था। साथ के श्रावकों को पहले ही कह दिया था, आज हम अकेले ही ध्यान क
? अमृत माँ जिनवाणी से - १५० ?
"दीवान श्री लट्ठे की कार्यकुशलता"
पिछले दो प्रसंगों से जोड़कर यह आगे पढ़ें। पूज्य शान्तिसागरजी महाराज के चरणों को प्रणाम कर लट्ठे साहब महराज कोल्हापुर के महल में पहुँचे। महराज साहब उस समय विश्राम कर रहे थे, फिर भी दीवान का आगमन सुनते ही बाहर आ गए।
दीवान साहब ने कहा, "गुरु महराज बाल-विवाह प्रतिबंधक कानून बनाने को कह रहे हैं। राजा ने कहा, तुम कानून बनाओं मै उस पर सही कर दूँगा।" तुरंत लट्ठे ने कानून का मसौदा तैयार किया। कोल्
? अमृत माँ जिनवाणी से - १४९ ?
"बाल विवाह प्रतिबंधक कानून"
कल के प्रसंग में हमने पूज्य आचार्यश्री शान्तिसागर जी महाराज की पावन प्रेरणा से कोल्हापुर राज्य लागू बाल विवाह प्रतिबंधक कानून के बारे में चर्चा प्रारम्भ की थी।
एक बार कोल्हापुर के शहुपुरी के मंदिर में पंचकल्याणक प्रतिष्ठा हो रही थी। वहाँ पूज्य शान्तिसागरजी महाराज विराजमान थे। दीवान बहादुर श्री लट्ठे प्रतिदिन सायंकाल के समय महाराज के दर्शनार्थ आया करते थे। एक दिन लट्ठे महाशय ने आकर आचार्यश्
☀जय जिनेन्द्र बंधुओं,
आज के प्रसंग से आपको सामाजिक कुरीति के प्रतिबन्ध की ऐसी नई बात पता चलेगी जो पूज्य आचार्यश्री शान्तिसागरजी महाराज के पावन आशीर्वाद से महाराष्ट्र प्रान्त कानून के रूप में लागू हुई।
मुझे भी यह प्रसंग आप तक पहुचाते हुए अत्यंत हर्ष हो रहा है कि भारत में सर्वप्रथम बाल-विवाह प्रतिबंधक कानून आचार्यश्री शान्तिसागरजी महाराज की प्रेरणा से महाराष्ट्र राज्य के कोल्हापुर प्रान्त में बना।
? अमृत माँ जिनवाणी से - १४८ ?
"बाल विवाह प्रतिबंधक का
☀जय जिनेन्द्र बंधुओं,
प्रस्तुत प्रसंग में पूज्य आचार्यश्री शान्तिसागरजी द्वारा, जीवन में अधिक विनोद के परिणाम को बताने के लिए कथानक बताया है।
यह प्रसंग हम सभी गृहस्थों के जीवन के लिए बहुत उपयोगी है।
? अमृत माँ जिनवाणी से - १४७ ?
"कथा द्वारा शिक्षा"
पूज्य आचार्यश्री शान्तिसागरजी महाराज ने बड़वानी की तरफ विहार किया था। संघ के साथ में तीन धनिक गुरुभक्त तरुण भी थे। वे बहुत विनोदशील थे। उनका हासपरिहास का कार्यक्रम सदा चलता था
? अमृत माँ जिनवाणी से - १४६ ?
"सुख का रहस्य"
एक व्यक्ति ने पूज्य शान्तिसागरजी महाराज के समक्ष प्रश्न किया- "महाराज ! आपके बराबर कोई दुखी नहीं है। कारण आपके पास सुख के सभी साधनों का अभाव है।"
महराज ने कहा, "वास्तव में जो पराधीन है वह दुखी हैं। जो स्वाधीन हैं वह सुखी है। इंद्रियों का दास दुखी है।
हम इंद्रियों के दास नहीं हैं। हमारे सुख की तुम क्या कल्पना कर सकते हो? इंद्रियों से उत्पन्न सुख मिथ्या है। आत्मा के अनुभव
? अमृत माँ जिनवाणी से - १४५ ?
"गृहस्थ जीवन पर चर्चा"
अपने विषय में पूज्य शान्तिसागरजी महाराज ने कहा- "हम अपनी दुकान में ५ वर्ष बैठे। हम तो घर के स्वामी के बदले में बाहरी आदमी की तरह रहते थे।"
?उदास परिणाम?
उनके ये शब्द बड़े अलौकिक हैं- "जीवन में हमारे कभी भी आर्तध्यान, रौद्रध्यान नहीं हुए। घर में रहते हुए हम सदा उदास भाव में रहते थे। हानि-लाभ, इष्ट-वियोग, अनिष्ट-संयोग आदि के प्रसंग आने पर भी हमारे परिणामों में कभी भ
☀जय जिनेन्द्र बंधुओं,
प्रस्तुत प्रसंग से पूज्यश्री के कथन से जीवन में निमित्त का महत्व बहुत आसानी से समझ में आता है।
? अमृत माँ जिनवाणी से - १४४ ?
"निमित्त कारण का महत्व"
पूज्य आचार्यश्री शान्तिसागरजी महाराज ने कहा था- "निमित्त कारण भी बलवान है। सूर्य का प्रकाश मोक्ष मार्ग में निमित्त है। यदि सूर्य का प्रकाश न हो तो मोक्षमार्ग ही न रहे। प्रकाश के अभाव में मुनियों का विहार-आहार आदि कैसे होंगे?"
उन्होंने कहा- "कुम्भकार के
☀जय जिनेन्द्र बंधुओं,
प्रस्तुत प्रसंग उपवास के सम्बन्ध में श्रेष्टचर्या के धारक परम तपस्वी महान आचार्य निग्रंथराज पूज्य शान्तिसागरजी महाराज के श्रेष्ठ अनुभव को व्यक्त करता है।
इस प्रसंग को पढ़कर, निरंतर अपने कल्याण की भावना से उपवास करने वाले श्रावकों को अत्यंत हर्ष होगा एवं रूचि पूर्वक पढ़ने वाले अन्य सभी श्रावकों के लिए उपवास के महत्व को समझने के साथ आत्मकल्याण हेतु दिशा प्राप्त होगी।
? अमृत माँ जिनवाणी से - १४३ ?
"महाराज का अ
? अमृत माँ जिनवाणी से - १४२ ?
"शासन का दोष"
वर्तमान देश के अनैतिक वार्तावरण पर चर्चा चलने पर पूज्य शान्तिसागरजी महाराज ने कहा था, "इस भ्रष्टाचार में मुख्य दोष प्रजा का नहीं है, शासन सत्ता का है।
गाँधीजी ने मनुष्य पर दया के द्वारा लोक में यश और सफलता प्राप्त की और जगत को चकित कर दिया। इससे तो धर्म गुण दिखाई देता है। यह दया यदि जीवमात्र पर हो जाये तो उसका मधुर फल अमर्यादित हो जायेगा।
आज तो सरकार जीवों के घात में लग रही है यह अ
? अमृत माँ जिनवाणी से - १४१ ?
"दीनों के हितार्थ विचार"
कुंथलगिरी में पर्युषण पर्व में पूज्य आचार्यश्री शान्तिसागरजी महाराज ने गरीबों के हितार्थ कहा था- "सरकार को प्रत्येक गरीब को जिसकी वार्षिक आमदनी १२० रूपये हो, पाँच एकड़ जमीन देनी चाहिए और उसे जीववध तथा मांस का सेवन न करने का नियम कराना चाहिए। इस उपाय से छोटे लोगों का उद्धार होगा।"
महराज के ये शब्द बड़े मूल्यवान हैं- "शूद्रों के साथ जीमने से उद्धार नहीं होता। उनको पाप से ऊपर उठाने से
? अमृत माँ जिनवाणी से - १४० ?
"वृद्धा की समाधि"
कुंथलगिरी में सन् १९५३ के चातुर्मास में लोणंद के करीब ६० वर्ष वाली बाई ने १६ उपवास किए थे, किन्तु १५ वे दिन प्रभात में विशुद्ध धर्म-ध्यानपूर्वक उनका शरीरांत हो गया।
उस वृद्धा के उपवास के बारे में एक बात ज्ञातव्य है। उसने पूज्य शान्तिसागरजी महाराज से १६ उपवास माँगे तब महराज ने कहा- "बाई ! तुम्हारी वृद्धावस्था है। ये उपवास नहीं बनेंगे। उसने आग्रह किया और कहा, महाराज ! मै प्राण दे दूँग
? अमृत माँ जिनवाणी से - १३९ ?
"दयापूर्ण दॄष्टि"
लोग पूज्य आचार्यश्री शान्तिसागरजी महाराज को आहार देने में गड़बड़ी किया करते थे, इस विषय में मैंने(लेखक ने) श्रावकों को समझाया कि जिस घर में महराज पड़गाहे जाए, वहाँ दूसरों को अनुज्ञा के नहीं जाना चाहिए, अन्यथा गड़बड़ी द्वारा दोष का संचय होता है। मै लोगों को समझा रहा था, उस प्रसंग पर आचार्यश्री की मार्मिक बात कही थी।
महाराज बोले- "यदि हम गडबड़ी को बंद करना चाहें, तो एक दिन में सब ठीक
? अमृत माँ जिनवाणी से - १३८ ?
"निर्वाण-भूमि का प्रभाव"
प्रश्न - "महाराज ! पाँच-२ उपवास करने से तो शरीर को कष्ट होता होगा?"
उत्तर- "हमें यहाँ पाँच उपवास एक उपवास सरीखे लगते हैं। यह निर्वाण भूमि का प्रभाव है। निर्वाण-भूमि में तपस्या का कष्ट नहीं होता है। हम तो शक्ति देखकर ही तप करते हैं।"
?मौन से लाभ?
प्रश्न- "महाराज ! मौन व्रत से आपको क्या लाभ पहुँचता है?"
उत्तर- "मौन करने से संसार से आधा सम्बन्ध छूट जाता है। सैकड़ों लोगों
? अमृत माँ जिनवाणी से - १३७ ?
"कुंथलगिरी पर्यूषण"
कुंथलगिरी में पूज्य आचार्य शान्तिसागर महाराज के चातुर्मास में पर्यूषण पर्व पर तारीख १२ सितम्बर सन् १९५३ से तारीख २६ सितम्बर सन् १९५३ तक रहने का पुण्य सौभाग्य मिला था। उस समय आचार्यश्री ने ८३ वर्ष की वय में पंचोपवास् मौन पूर्वक किए थे। इसके पूर्व भी दो बार पंचोपवास् हुए थे। करीब १८ दिन तक उनका मौन रहा था। भाद्रपद के माह भर दूध का भी त्याग था। पंचरस तो छोड़े चालीस वर्ष हो गए।
? अमृत माँ जिनवाणी से - १३६ ?
"सुन्दर प्राश्चित"
पूज्य आचार्यश्री शान्तिसागरजी महाराज का अनुभव और तत्व को देखने की दृष्टि निराली थी।
एक बार महाराज बारामती में थे। वहाँ एक संपन्न महिला की बहुमूल्य नाथ खो गई। वह हजारों रूपये की थी। इससे बडो-२ पर शक हो रहा था। अंत में खोजने के बाद उसी महिला के पास वह आभूषण मिल गया।
वह बात जब महाराज को ज्ञात हुई, तब महाराज ने उस महिला से कहा- "तुम्हे प्रायश्चित लेना चाहिए। तुमने दूसरों