शरीर नौकर है - अमृत माँ जिनवाणी से - ७८
? अमृत माँ जिनवाणी से - ७८ ?
"शरीर नौकर है"
मुनिश्री वर्धमान सागर जी महाराज ने अपने संस्मरण में आचार्यश्री शान्तिसागर जी महाराज के बारे में बताया कि -
"उनकी दृष्टि थी कि यह शरीर नौकर है। नौकर को भोजन दो और काम लो। आत्मा को अमृत-पान कराओ।"
भादों सुदी त्रयोदशी को महाराज ने समयसार प्रवचन में कहा था- "द्रव्यानुयोग के अभ्यास के लिए प्रथमानुयोग सहायक होता है। उसके अभ्यास से द्रव्यानुयोग कठिन नहीं पड़ता।"
वास्तव में प्रथमानुयोग से आध्यात्म रस का पान करने वाली महनीय समर्थ तथा त्यागी विभूतियों का जीवन वृत्त ज्ञात होता है, जैसे पांडव पुराण में आत्म निमग्न युधिष्ठिर आदि की दृढ़ता अवगत होती है।
? स्वाध्याय चरित्र चक्रवर्ती ग्रन्थ का ?
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