रसना इंद्रिय का जय - अमृत माँ जिनवाणी से - ८४
? अमृत माँ जिनवाणी से - ८४ ?
"रसना इन्द्रिय का जय"
नसलापुर चातुर्मास में यह चर्चा चली कि- "महाराज ! आप दूध, चावल तथा जल मात्र क्यों लेते हैं? क्या अन्य पदार्थ ग्रहण करने योग्य नहीं हैं।"
महाराज ने कहा- "तुम आहार में जो वस्तु देते हो, वह हम ले लेते हैं। तुम अन्य पदार्थ नहीं देते, अतः हमारे न लेने की बात ही नहीं उत्पन्न होती है।"
दूसरे दिन महाराज चर्या को निकले। दाल, रोटी, शाक आदि सामग्री उनको अर्पण की जाने लगी, तब महाराज ने अंजलि बंद कर ली। आहार के पश्चात् महाराज से निवेदन किया गया- "स्वामिन् ! आज भी आपने पूर्ववत आहार लिया। रोटी आदि नहीं ली। इसका क्या कारण है?"
महाराज ने पूंछा- "तुमने आटा कब पीसा था, कैसे पीसा था?" इस प्रश्न के उत्तर में यह बताया गया कि रात को आटा पीसा था आदि। तब महाराज ने कहा- "ऐसा आहार मुनि को नहीं लेना चाहिए।"
इसके बाद तीसरे दिन फिर पूर्ववत ही महाराज ने आहार लिया। आहार के पश्चात् महाराज ने भोजन की अनेक त्रुटियाँ बताई। भक्ष्य-अभक्ष्य के विषय में पूर्ण निर्णय होने में पंद्रह दिन का समय व्यतीत हो गया। इसके बाद महाराज ने अन्य शुद्ध भोज्य वस्तुओं का लेना प्रारम्भ किया।
केवल दूध, चावल, जल लेते लेते लगभग आठ दस वर्ष का समय व्यतीत हो गया था।
? स्वाध्याय चारित्र चक्रवर्ती ग्रन्थ का ?
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