जयपुर में भयंकर संकट में मेरुवत स्थिरता - अमृत माँ जिनवाणी से - ६७
? अमृत माँ जिनवाणी से - ६७ ?
"जयपुर में भयंकर संकट में मेरुवत स्थिरता"
जयपुर में ख़ानियो की नशिया में आचार्यश्री शान्तिसागरजी महाराज ने निवास किया था।
एक दिन नशिया के द्वार को किसी भाई ने भूल कर बंद कर दिया, पवन पर्याप्त मात्रा में नहीं पहुँचने से महाराज को दम घुटने से मूर्छा आ गई।
उसके पूर्व में चिल्लाकर दरवाजा खुलवा लेना या बाहर जाने के लिए हो हल्ला करना उनकी आत्मनिष्ठा पूर्ण पद्धति ने प्रतिकूल थी।
अतः भीषण परिस्थिति आने पर प्रतिकार के स्थान मे वे आत्मशक्तियों को केंद्रित करके विपत्तियों का स्वागत करने में संलग्न हो जाते थे।
उनके आध्यात्मिक कोष में विपत्तियों के प्रति नकार रूप शब्द का अभाव था।
कुछ काल के पश्चात् जब द्वार खोला गया तब महाराज मूर्छा की स्थिति में पाए गए।
ऐसी ही स्थिति समडोली ग्राम में भी हुई थी। ऐसी ही भीषणतम स्थिति में उनमे घबराहट का लेश मात्र भी नहीं था। उनमें मेरुवत स्थिरता थी।
? स्वाध्याय चारित्र चक्रवर्ती ग्रन्थ का ?
0 Comments
Recommended Comments
There are no comments to display.