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जाने प्रथमाचार्य शान्तिसागरजी महराज को

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जैनवाणी में सम्यक्त्व धारा - अमृत माँ जिनवाणी से - ३५

?     अमृत माँ जिनवाणी - ३५     ?        "जैनवाड़ी में सम्यक्त्व धारा"         आचार्यश्री शान्तिसागरजी महाराज का क्षुल्लक अवस्था मे तृतीय चातुर्मास कोगनोली के उपरांत उन्होंने कर्नाटक की और विहार किया।           जैनवाड़ी में आकर उन्होंने वर्षायोग का निश्चय किया। इस जैनवाड़ी को जैनियो की बस्ती ही समझना चाहिए। वहाँ प्रायः सभी जैनी ही थे।        किन्तु वे प्रायः अज्ञान मे डूबे हुए थे। सभी कुदेवो की पूजा करते थे।       महाराज की पुण्य देशना से सभी श्रावको ने मिथ्यात्व का त्

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सतगौड़ा के पिता - अमृत माँ जिनवाणी से - ३४

?    अमृत माँ जिनवाणी का - ३४     ?                "सतगौड़ा के पिता"       आचार्यश्री शान्तिसागरजी महाराज ने गृहस्थ जीवन मे जो उनके पिता थे उनके बारे में बताया था।कि उनके पिता प्रभावशाली, बलवान, रूपवान, प्रतिभाशाली, ऊंचे पूरे थे। वे शिवाजी महाराज सरीखे दिखते थे।        उन्होंने १६ वर्ष पर्यन्त दिन मे एक बार ही भोजन पानी लेने के नियम का निर्वाह किया था, १६ वर्ष पर्यन्त ब्रम्हचर्य व्रत रखा था। उन जैसा धर्माराधना पूर्वक सावधानी सहित समाधिमरण मुनियो के लिए भी कठिन है।      ए

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गुफा में ध्यान और सर्प उपद्रव में स्थिरता - अमृत माँ जिनवाणी से - ३३

?     अमृत माँ जिनवाणी से - ३३     ?   "गुफा मे ध्यान व सर्प उपद्रव में स्थिरता"               आचार्यश्री शान्तिसागरजी महाराज के पास दूर-दूर के प्रमुख धर्मात्मा श्रावक धर्म लाभ के लिए आते थे। धर्मिको के आगमन से किस धर्मात्मा को परितोष ना होगा, किन्तु अपनी कीर्ति के विस्तार से महाराज की पवित्र आत्मा को तनिक भी हर्ष नही होता था।वे बाल्य जीवन से ही ध्यान और अध्यन के अनुरागी थे।         अब प्रसिद्धिवश बहुत लोगो के आते रहने से ध्यान करने मे बाधा सहज ही आ जाती थी।इससे महाराज ने पहा

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आत्म प्रसंशा के प्रति उनकी धारणा - अमृत माँ जिनवाणी से - ३२

?     अमृत माँ जिनवाणी से - ३२     ?      "आत्म प्रशंसा के प्रति उनकी धारणा"                शरीर के प्रति अनात्मीय भाव होने से महाराज कहने लगे- "यह मकान दूसरों का है। जब मकान गिरने लगेगा तो दूसरे मकान मे रहेंगे।"       जो लोग महाराज की स्तुति करते हैं, "प्रशंसा करते हैं। वे उनके इन वक्यों को बाँचें- "मिट्टी की क्या प्रशंसा करते हो ? हमारी कीमत क्या है ?" ? स्वाध्याय चारित्र चक्रवर्ती ग्रंथ का ?

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क्या जमाना खराब है? - अमृत माँ जिनवाणी से - ३१

?     अमृत माँ जिनवाणी से - ३१     ?             "क्या जमाना खराब है?"           एक दिन आचार्यश्री शान्तिसागरजी महाराज के सामने चर्चा चली कि आज का जमाना खराब है, शिथिलाचार का युग है।        पुराना रंग ढंग बदल गया, अतः महाराज को भी अपना उपदेश नय ढंग से देना चाहिए।          महाराज बोले- "कौन कहता है जमाना खराब है। तुम्हारी बुद्धि खराब है, जो तुम जमाने को खराब कहते हो। जमाना तो बराबर है|           सूर्य पूर्व से उदित होता था, पश्चिम मे अस्त होता था, वही बात आज भी है।

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सर्पराज का मुख के समक्ष खड़ा रहना - अमृत माँ जिनवाणी से - ३०

?    अमृत माँ जिनवाणी से - ३०    ?   "सर्पराज का मुख के समक्ष खड़ा रहना"               एक दिन शान्तिसागरजी महाराज जंगल में स्थित एक गुफा में ध्यान कर रहे थे कि इतने में सात-आठ हाथ लंबा खूब मोटा लट्ठ सरीखा सर्प आया। उसके शरीर पर बाल थे। वह आया और उनके मुँह के सामने फन फैलाकर खड़ा हो गया।            उसके नेत्र ताम्र रंग के थे। वह महाराज पर दृष्टि डालता था और अपनी जीभ निकालकर लपलप करता था।उसके मुख से अग्नि के कण निकलते थे।              वह बड़ी देर तक हमारे नेत्रो के सामने खड़ा

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अद्भुत आत्मबल - अमृत माँ जिनवाणी से - २९

?     अमृत माँ जिनवाणी से - २९      ?               "अद्भुत आत्मबल"            कवलाना में चातुर्मास की घटना है। महाराज ने अन्न छोड़ रखा था। फलो का रस आदि हरी वस्तुओ को छोड़े लगभग १८ वर्ष हो गए थे। घी,नमक,शक्कर,छाछ आदि पदार्थो को त्यागे हुए भी बहुत समय हो गया था।        उस चातुर्मास में धारणा-पारणा का क्रम चल रहा था। गले का रोग अलग त्रास दायक हो रहा था।        एक उपवास के बाद दूसरे पारणे के दिन अंतराय आ गया। तीसरा दिन उपवास का था। चौथे दिन फिर अंतराय आ गया, पाँचवा दिन फिर उ

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पंच परमेष्ठी स्मरण - अमृत माँ जिनवाणी से - २८

?      अमृत माँ जिनवाणी से -२८      ?              "पंच परमेष्ठी स्मरण"                 आचार्यश्री शान्तिसागरजी महाराज से प्रश्न किया कि "उपवासों में आपको अनुकूलता होती है या नहीं?"          महाराज ने कहा "हम उतने उपवास करते हैं, जितने में मन की शांति बनी रहे, जिसमें मन की शांति भंग हो, वह काम नहीं करना चाहिए।"         पुनः प्रश्न "महाराज ! एक ने पहले उपवास का लंबा नियम ले लिया। उस समय उसे ज्ञान ना था, कि यह उपवास मेरे लिए दुखद हो जायेगा। अब वह कष्टपूर्ण स्थिति में क्या

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क्लांत पुरुष को लादकर राजगृही की वंदना - अमृत माँ जिनवाणी से - २७

?    अमृत माँ जिनवाणी से  २७     ? 'क्लांत पुरुष को लादकर राजगिरी की वंदना'          शिखरजी की वंदना जैसी घटना राजगिरी के पञ्च पहाड़ियों की यात्रा में हुई।        वहाँ की वंदना बड़ी कठिन लगती है। कारण वहाँ का मार्ग पत्थरो के चुभने से पीढ़ाप्रद होता है।       जैसे यात्री शिखरजी आदि की अनेक वंदना करते हुए भी नहीं थकता है, वैसी स्थिति राजगिर में नहीं होती है। यहाँ पांचों पर्वतों की वंदना एक दिन  में करने वाला अपने को धन्यवाद देता है।         महाराज ने देखा कि एक पुरुष अत

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?वृद्धा को पीठ पर लाद शिखरजी की वंदना - अमृत माँ जिनवाणी से - २६

?    अमृत माँ जिनवाणी से -२६    ?    "वृद्धा को पीठ पर लाद शिखरजी वंदना"        गृहस्थ अवस्था में आचार्यश्री शान्तिसागर जी महाराज जब शिखरजी गए उस समय का प्रसंग है।        आचार्यश्री(गृहस्थ जीवन में) पर्वत पर चढ़ रहे थे। उनकी करुणा दृष्टि एक वृद्ध माता पर पडी, जो प्रयत्न करने पर भी आगे बढ़ने में असमर्थ हो गयी थी। थोडा चलती थी, किन्तु फिर ठहर जाती थी। पैसा इतना ना था कि पहले से ही डोली का प्रबंध करती।       उस माता को देखकर इन महामना के ह्रदय में वात्सल्य भाव उत्पन्न हुआ।

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शेर - अमृत माँ जिनवाणी से - २५

?     अमृत माँ जिनवाणी से - २५     ?                        "शेर"        "कोन्नूर की गुफा में एक बार आचार्यश्री शान्तिसागरजी महाराज ध्यान कर रहे थे, तब शेर आ गया था।"         मैंने पूंछा, "महाराज शेर के आने से भय का संचार तो हुआ होगा?"      महाराज ने कहा, "नहीं कुछ देर बाद शेर वहाँ से चला गया ।"    मैंने पूंछा, "महाराज निर्ग्रन्थ दीक्षा लेने के बाद कभी शेर आपके पास आया था?"     महाराज ने कहा, "हम मुक्तागिरी के पर्वत पर रहते थे, वहाँ शेर आया करता था। श्रवणबेलगो

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त्याग भाव - अमृत माँ जिनवाणी से - २४

?     अमृत माँ जिनवाणी से - २४     ?                    "त्याग भाव"        एक दिन लेखक ने आचार्य शान्तिसागरजी महाराज से पूंछा, "महाराज आपके वैराग्य परिणाम कब से थे?"         महाराज, "छोटी अवस्था से ही हमारे त्याग के भाव थे। १७ या १८ वर्ष की अवस्था में ही हमारे निर्ग्रन्थ दीक्षा लेने के परिणाम थे। जो पहले बड़े-बड़े मुनि हुए है, वे सब छोटी ही अवस्था में निर्ग्रन्थ बने थे।"        मैंने पूछा, "फिर कौन सी बात थी, जो आप उस समय मुनि न बन सके?"        महाराज, "हमारे पिता का

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प्राणरक्षा - अमृत माँ जिनवाणी से - २३

?     अमृत माँ जिनवाणी से - २३     ?                     "प्राणरक्षा"           १९५२ को ग्रन्थ के लेखक ने आचार्य शान्तिसागरजी महाराज के बारे मे जानने हेतु उनके गृहस्थ जीवन के छोटे भाई के पुत्र से मिले।उन्होंने बताया-        महाराज की दुकान पर १५-२० लोग शास्त्र सुनते थे।मलगौड़ा पाटिल उनके पास शास्त्र सुनने रोज आता था। एक रात वह शास्त्र सुनने रोज आता था। एक रात शास्त्र सुनने नहीं आया, तब शास्त्र चर्चा के पश्चात महाराज उनके घर गये, वहाँ नहीं मिलने से रात में ही उनके खेत पर पहुँच

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जिन प्रभाव की महिमा - अमृत माँ जिनवाणी से - २२

?     अमृत माँ जिनवाणी से - २२     ?             "जिन प्रभाव की महिमा"                 एक बार लेखक ने पूज्य आचार्यश्री शान्तिसागर जी महाराज से पूंछा -            महाराज जिनेन्द्र भगवान का नाम, भाव को बिना समझे भी जपने से क्या जीव के दुःख दूर होते हैं?यदि जिनेन्द्र गुण स्मरण से कष्टो का निवारण होता है, तो इसका क्या कारण है?      आचार्य महाराज ने उत्तर दिया -           जिस प्रकार अग्नि के आने से नवनीत द्रवीभूत हो जाता है, उसी प्रकार वीतराग भगवान के नाम के प्रभाव

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लोकोत्तर व्यक्तित्व - अमृत माँ जिनवाणी से - २१

?    अमृत माँ जिनवाणी से - २१    ?               "लोकोत्तर व्यक्तित्व"                  अक्टूबर सन १९५१ में बारामती के उद्यान में लेखक ने उनके छोटे भाई के साथ बड़ी विनय के साथ, आचार्यश्री शान्तिसागर जी महाराज से उनकी कुछ जीवन गाथा जानने की प्रार्थना की, तब उत्तर मिला कि हम संसार के साधुओ में सबसे छोटे हैं, हमारा लास्ट नंबर है, उससे तुम क्या लाभ ले सकोगे? हमारे जीवन में कुछ भी महत्व की बात नहीं है।     लेखक ने कहा महाराज आपका साधुओ में प्रथम स्थान है या अंतिम, यह बात देखने वाले

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पंचमकाल में मुनियों की अल्प तपस्या द्वारा महान निर्जरा - अमृत माँ जिनवाणी से - २०

?     अमृत माँ जिनवाणी से - २०    ?    पंचमकाल में मुनियो की अल्प तपस्या्                               द्वारा महान निर्जरा       जो व्यक्ति यह सोचता हो कि आज चतुर्थ कालीन मुनियो के समान कठोर तपस्वी जीवन व्यतीत करना अशक्य होने के कारण कर्मो की निर्जरा कम होती होगी, उसे आचार्य देवसेन के ये शब्द बड़े ध्यान पढ़ना चाहिए-           "पहले हजार वर्ष तप करने पर जितने कर्मो का नाश होता था आज हीन सहनन में एक वर्ष के तप द्वारा कर्मो का नाश होता है।"       इसका कारण यह है कि हीन

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महराज के परिवार में उच्च संस्कार - अमृत माँ जिनवाणी - १९

?    अमृत माँ जिनवाणी से - १९    ?     "महाराज के परिवार मे उच्च संस्कार"        वर्ष १९५२ मे चरित्र चक्रवर्ती ग्रंथ के लेखक आचार्यश्री शान्तिसागर जी महाराज के ग्राम मे उनके गृहस्त जीवन के बारे मे जानकारी प्राप्त करने हेतु गए।       ११ सितम्बर को अष्टमी के  दिन उनको उस पवित्र घर मे भोजन मिला, जहाँ आचार्य महाराज रहा करते थे।       उस दिन पंडितजी के लिए लवण आदि षटरस विहीन भोजन बना था।वह भोजन करने बैठे।पास मे महाराज के भाई का नाती भोजन कर रहा था।       बालक भीम की थाली मे ब

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शुभ दोहला - अमृत माँ जिनवाणी से - १८

?    अमृत माँ जिनवाणी से - १८    ?                   "शुभ दोहला"        चरित्र चक्रवर्ती ग्रंथ के लेखक जब आचार्यश्री शान्तिसागरजी महाराज के बचपन की स्मृतियों के बारे में जानने हेतु उनके गृहस्थ जीवन के बड़े भाई मुनि श्री वर्धमान सागर जी महाराज के पास गए।     उन्होंने पूंछा, "स्वामिन् संसार का उद्धार करने वाले महापुरुष जब माता पिता के गर्भ में आते हैं, तब शुभ- शगुन कुटुम्बियों आदि को देखते हैं। माता को भी मंगल स्वप्न आदि का दर्शन होता है।          आचार्य महाराज सदृश रत्नत्रय

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सर्पराज का शरीर पर लिपटना - अमृत माँ जिनवाणी से - १७

?    अमृत माँ जिनवाणी से - १७    ?         "सर्पराज का शरीर पर लिपटना"         आचार्यश्री शान्तिसागरजी महाराज की तपस्चर्या अद्भुत थी। कोगनोली में लगभग आठ फुट लंबा स्थूलकाय सर्पराज उनके शरीर से दो घंटे पर्यन्त लिपटा रहा । वह सर्प भीषण होने के साथ ही वजनदार भी था । महाराज का शरीर अधिक बलशाली था, इससे वे उसके भारी भोज का धारण कर सके।              दो घंटे बाद में उनके पास पहुँचा । उस समय वे अत्यंत प्रसन्न मुद्रा में थे । किसी प्रकार की खेद, चिंता या मलिनता उनके मुख मंडल पर नहीं

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असाधारण शक्ति - अमृत माँ जिनवाणी से - १६

?     अमृत माँ जिनवाणी से - १६     ?               "असाधारण शक्ति"              आचार्य शान्तिसागरजी महाराज का शरीर बाल्य-काल मे असाधारण शक्ति सम्पन्न रहा है। चावल के लगभग चार मन के बोरों को सहज ही वे उठा लेते थे। उनके समान कुश्ती खेलने वाला कोई नही था। उनका शरीर पत्थर की तरह कड़ा था।       वे बैल को अलग कर स्वयं उसके स्थान में लगकर, अपने हांथो से कुँए से मोट द्वारा पानी खेच लेते थे। वे दोनो पैर को जोड़कर १२ हाथ लंबी जगह को लांघ जाते थे। उनके अपार बल के कारण जनता उन्हें बहुत चाहती

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येलगुल में जन्म - अमृत माँ जिनवाणी से - १५

?       अमृत जिनवाणी से -१५       ?                 "येलगुल मे जन्म"          जैन संस्कृति के विकास तथा उन्नति के इतिहास पर दृष्टि डालने पर यह ज्ञात होता है कि विश्व को मोह अंधकार से दूर करने वाले तीर्थंकरो ने अपने जन्म द्वारा उत्तर भारत को पवित्र किया तथा निर्वाण द्वारा उसे ही तीर्थस्थल बनाया, किन्तु उनकी धर्ममयी देशना रूप अमृत को पीकर, वीतरागता के रस से भरे शास्त्रो का निर्माण करने वाले धुरंधर आचार्यो ने अपने जन्म से दक्षिण भारत की भूमि को श्रुत तीर्थ बनाया।       उसी ज्ञा

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लोतोत्तर वैराग्य - अमृत माँ जिनवाणी से - १४

?      अमृत माँ जिनवाणी से - १४     ?                 " लोकोत्तर वैराग्य "        आचार्यश्री शान्तिसागरजी महाराज के ह्रदय मे अपूर्व वैराग्य था।       एक समय मुनि वर्धमान स्वामी ने महाराज के पास अपनी प्रार्थना भिजवायी- "महाराज ! मैं तो बानबे वर्ष से अधिक का हो गया। आपके दर्शनों की बड़ी इच्छा है। क्या करूँ ? "      इस पर महाराज ने कहा- "हमारा वर्धमान सागर का क्या संबंध ? ग्रहस्थावस्था मे हमारा बड़ा भाई रहा है सो इसमें क्या ? हम तो सब कुछ त्याग कर चुके हैं।        पंच प

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द्रोणगिरी क्षेत्र में शेर का आना - अमृत माँ जिनवाणी से - १३

?     अमृत माँ जिनवाणी से -१३     ?        "द्रोणागिरी क्षेत्र में सिंह का आना"           सन १९२८ मे वैसाख सुदी एकम को आचार्य शान्तिसागर महाराज का संघ द्रोणागिरी सिद्ध क्षेत्र पहुँचा।हजारो भाइयो ने दूर-२ से आकर दर्शन का लाभ लिया।       महाराज पर्वत पर जाकर जिनालय मे ध्यान करते थे। उनका रात्रि का निवास पर्वत पर होता था। प्रभात होते ही लगभग आठ बजे महाराज पर्वत से उतरकर नीचे आ जाते थे।     एक दिन की बात है कि महाराज समय पर ना आये। सोचा गया संभवतः वे ध्यान मे मग्न होंगे। दर्

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बाहुबली स्वामी के बारे में अलौकिक दृष्टि - अमृत माँ जिनवाणी से - १२

?    अमृत माँ जिनवाणी से - १२    ? "बाहुबलीस्वामी के विषय मे आलौकिक दृष्टी"      जब हमने आचार्यश्री शान्तिसागरजी महाराज से पुछा- "महाराज गोमटेश्वर की मूर्ति का आपने दर्शन किया है उस सम्बन्ध मे आपके अंतरंग मे उत्पन्न उज्ज्वल भावो को जानने की बड़ी इच्छा है।"     उस समय महाराज ने उत्तर दिया था उसे सुनकर हम चकित हो गये।               उन्होंने कहा था- "बाहुबली स्वामी की मूर्ति बड़ी है। यह जिनबिम्ब हमे अन्य मूर्तियो के समान ही लगी। हम तो जिनेन्द्र के गुणों का चिंतवन करते हैं, इसीलिए ब

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आत्मबल - अमृत माँ जिनवाणी से - ११

?    अमृत माँ जिनवाणी से - ११     ?                     "आत्मबल"                 आत्मबल जागृत होने पर बड़े-२ उपवास आदि तप सरल दिखते हैं।      बारहवे उपवास के दिन लगभग आधा मील चलकर मंदिर से आते हुए आचार्य शान्तिसागर महाराज के शिष्य पूज्य नेमिसागर मुनिराज ने कहा था- "पंडितजी ! आत्मा में अनंत शक्ति है।अभी हम दस मील पैदल चल सकते हैं।"      मैंने कहा था- "महाराज, आज आपके बारह उपवास हो गए हैं।" वे बोले, "जो हो गए, उनको हम नहीं देखते हैं।इस समय हमें ऐंसा लगता है, कि अब केवल पाँ

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