? अमृत माँ जिनवाणी से - १८५ ?
"सबके उपकारी"
सातगौड़ा अकारण बंधु तथा सबके उपकारी थे। उनको धर्म तथा नीति के मार्ग में लगाते थे। वे भोज भूमि के पिता तुल्य प्रतीत होते थे।
उनके साधु बनने पर ऐसा लगा कि नगर के पिता अब हमेशा के लिए नगर को छोड़कर चले गए। उस समय उनकी चर्चा होते ही आँसू आ जाते हैं कि उस जैसी विश्वपूज्य विभूति के ग्राम में हम लोगों का जन्म हुआ है।
? स्वाध्याय चारित्र चक्रवर्ती ग्रंथ का ?
☀जय जिनेन्द्र बंधुओं,
आज के प्रसंग के माध्यम से आप पूज्य शान्तिसागरजी महराज की गृहस्थ जीवन से ही अद्भुत निस्पृहता को जानकर, निश्चित ही सोचेंगे कि यह लक्षण किसी सामान्य आत्मा के नहीं अपितु जन्म-जन्मान्तर से आत्म कल्याण हेतु साधना करने वाली भव्य आत्मा के ही हैं।
? अमृत माँ जिनवाणी से - १८४ ?
"मुनिभक्ति व निस्प्रह जीवन"
मुनियों पर सातगौड़ा की बड़ी भक्ति रहती थी। एक मुनिराज को वे अपने कंधे पर बैठाकर वेदगंगा तथा दूधगंगा के संगम के पार ले
? अमृत माँ जिनवाणी से - १८३ ?
"अश्व परीक्षा आदि में पारंगत"
वे अश्व परीक्षा में प्रथम कोटि के थे। वे अपनी निपुणता किसी को बताते नहीं थे, केवल गुणदोष का ज्ञान रखते थे।
वे घर के गाय बैल आदि को खूब खिलाते थे और लोगों को कहते थे कि इनको खिलाने में कभी भी कमी नहीं करना चाहिए। आज उनके सुविकसित जीवन में जो गुण दिखते हैं, वे बाल्यकाल में बट के बीज के समान विद्यमान थे। बचपन में वे माता के साथ प्रतिदिन मंदिर जाया करते थे।
?आत्मध्यान की रु
? अमृत माँ जिनवाणी से - १८२ ?
"मधुर तथा संयत जीवन"
बाल्य अवस्था में सातगौड़ा का गरीब-अमीर सभी बालकों पर समान प्रेम रहता था। साथ के बालकों के साथ कभी भी लड़ाई झगड़ा नहीं होता था। उन्होंने कभी भी किसी से झगड़ा नहीं किया। उनके मुख से कभी कठोर वचन नहीं निकले। बाल्य-काल से ही वे शांति के सागर थे, मितभाषी थे।
उनकी खान-पान में बालकों के समान स्वछन्द वृत्ति नहीं थी। जो मिलता उसे वे शांत भाव से खा लिया करते थे। बाल्यकाल में बहुत घी दूध खाते थे। पाव,
☀जय जिनेन्द्र बंधुओं,
प्रस्तुत प्रसंग में पूज्यश्री का गृहस्थ जीवन से ही अद्भुत वैराग्य दृष्टिगोचर होगा। वर्तमान में हम सभी को नजदीक में मुनियों का पावन सानिध्य भी संभव हो जाता है लेकिन सातदौड़ा का साधुओं की अत्यंत अल्पता के साथ यह वैराग्य भाव उनकी महान भवितव्यता का स्पष्ट परीचायक हैं।
? अमृत माँ जिनवाणी से - १८१ ?
"वीतराग-प्रवृत्ति"
पूज्य आचार्यश्री शान्तिसागरजी महराज प्रारम्भ से ही वीतराग प्रवृत्ति वाले थे। घर में बहन की शाद
? अमृत माँ जिनवाणी से - १८० ?
"येलगुल में जन्म-१"
पूज्य आचार्यश्री शान्तिसागरजी महराज के जन्म के बारे में पूज्य वर्धमानसागर जी महराज ने बताया था कि भोजग्राम से लगभग तीन मील की दूरी पर येलगुल ग्राम है। वहाँ हमारे नाना रहते थे। उनके यहाँ ही महराज का जन्म हुआ था। महराज के जन्म की वार्ता ज्ञात होते ही सबको बड़ा आनंद हुआ था।
ज्योतिष से जन्मपत्री बनवाई गई। उसने बताया था कि यह बालक अत्यंत धार्मिक होगा। जगतभर में प्रतिष्ठा प्राप्त करेगा तथा संस
? अमृत माँ जिनवाणी से - १७९ ?
"लोकस्मृति-१"
पूज्य शान्तिसागरजी महराज के गृहस्थ जीवन के बड़े भाई जो उस समय वर्धमानसागर के रूप में थे ने बताया, "हमारे माता-पिता महान धार्मिक थे। धार्मिक पुत्र सातगौड़ा अर्थात महराज पर उनकी विशेष अपार प्रीति थी। महराज जब छोटे शिशु थे, तब सभी लोगों का उन पर बड़ा स्नेह था। वे उनको हाँथो-हाथ लिए रहते थे। वे घर में रह ही नहीं पाते थे।
मैंने पूंछा, "स्वामिन् संसार के उद्धार करने वाले महापुरुष जब माता के गर्भ में आ
☀जय जिनेन्द्र बंधुओं,
अब आपके सम्मुख "चारित्र चक्रवर्ती ग्रंथ" के लोकस्मृति नामक अध्याय से सामग्री प्रस्तुत की जा रही है। पूज्य शान्तिसागरजी महराज के गृहस्थ जीवन की विभिन्न बातों के बारे में लेखक को जानकारी प्राप्त होना अत्यन्त कठिन कार्य था।
इस और आगे के प्रसंगों मे आपको यही जानकारी प्राप्त होगी की लेखक ने पूज्य शान्तिसागरजी महाराज के जीवन की विभिन्न जानकारियाँ कैसे जुटाई व वह जानकारियाँ क्या थीं।
? अमृत माँ जिनवाणी से - १७८ ?
☀जय जिनेन्द्र बंधुओं,
प्रस्तुत प्रसंग में लेखक ने सामाजिक सुधार हेतु पूज्य शांतिसागरजी महराज द्वारा प्रेरणा देने के सम्बन्ध में पूज्यजी की विशिष्ट सोच को व्यक्त किया है।
प्रस्तुत प्रसंग वर्तमान परिपेक्ष्य में भी अति महत्वपूर्ण है क्योंकि वर्तमान में अनेको साधु भगवंतों द्वारा समाज में बड़ रही विकृतियों से बचने तथा सामाजिक कुप्रथाओं को बंद करने की प्रेरणा दी जाती है, उस सम्बन्ध में भी कुछ लोग गलत सोच सकते हैं।
? अमृत माँ जिनवाणी से - १७७ ?
"
☀जय जिनेन्द्र बंधुओं,
आज का प्रसंग एक रोचक प्रसंग है। सामान्यतः पूज्य शान्तिसागरजी महराज के जीवन चरित्र की जिज्ञासा रखने वाले श्रावकों के मन में उनके विवाह के सम्बन्ध में जिज्ञासा रहती है।
पहले के समय में बालविवाह की कुप्रथा प्रचलित थी। बाल विवाह की प्रथा के अनुरूप ही नौ वर्ष के बालक सातगौड़ा का विवाह भी कम उम्र में ही कर दिया।
पूर्व प्रसंग से हम सभी को ज्ञात है कि पूज्य शान्तिसागरजी महराज की प्रेरणा से ही कोल्हापुर राज्य में देश में प्रथम बार बाल विवा
☀जय जिनेन्द्र बंधुओं,
आज आपको पूज्य शान्तिसागरजी महराज के उस समय के प्रसंग का वर्णन करते हैं जब पूज्य शान्तिसागरजी महराज तीर्थराज शिखरजी की वंदना की श्रृंखला में वीर निर्वाण भूमि पावापुरीजी पहुँचे थे।
लेखक के निर्वाण भूमि के वर्णन के पठन के उपरांत आप भी इस प्रकार अनुभव करेंगे कि आपने भी अभी-२ पावापुरीजी की वंदना की हो।
? अमृत माँ जिनवाणी से - १७५ ?
"वीर निर्वाण भूमि पावापुरी पहुँचना"
राजगिरी की वंदना के पश्चात् संघ ने महावीर भगवान के
? अमृत माँ जिनवाणी से - १७४ ?
"बाल ब्रह्मचारी का जीवन"
जब सातगौड़ा (भविष्य के शान्तिसागरजी महराज) अठारह वर्ष के हुए तब माता पिता ने फिर इनसे विवाह की चर्चा चलाई। इन्होंने अपनी अनिच्छा प्रगट की। इस पर पुनः आग्रह होने लगा, तब इन्होंने कहा, "यदि आपने पुनः हमें गृहजाल में फसने को दबाया, तो हम मुनि दीक्षा ग्रहण कर लेंगे।"
इस भय से पुनः विवाह के लिए आग्रह नहीं किया गया। इस प्रकार पूज्यश्री बाल्य जीवन से ही निर्दोष ब्रम्हचर्य-व्रत का पालन करते च
? अमृत माँ जिनवाणी से - १७३ ?
"प्रज्ञापुँज"
पूज्य आचार्यश्री शान्तिसागरजी महराज के गृहस्थ जीवन के बारे में लोगों से ज्ञात हुआ कि इनकी प्रवृत्ति असाधारण थी। वे विवेक के पुँज थे। बाल्यकाल में बाल-सूर्य सदृश प्रकाशक और सबके नेत्रों को प्यारे लगते थे। ये जिस कार्य में भी हाथ डालते थे, उसमें प्रथम श्रेणी की सफलता प्राप्त करते थे।
इनका प्रत्येक पवित्र कलात्मक कार्य में प्रथम श्रेणी भी प्रथम स्थान रहा है। अध्यन के अल्पतम साधन उपलब्ध
? अमृत माँ जिनवाणी से - १७२ ?
"गुणराशि"
ग्राम के कुछ वृद्धों से पूज्य आचार्यश्री शान्तिसागरजी महराज के बाल्य जीवन आदि के विषय में परिचय प्राप्त किया, ज्ञात हुआ कि ये पुण्यात्मा महापुरुष प्रारम्भ से ही असाधारण गुणों के भंडार थे। इनका परिवार बड़ा सुखी, समृद्ध, वैभवपूर्ण तथा जिनेन्द्र का अप्रतिम भक्त था।
इनकी स्मरण शक्ति जन साधारण में प्रख्यात थी। इन्होंने माता सत्यवती से सत्य के प्रति अनन्य निष्ठा और सत्यधर्म के प्रति प्राणाधिक श्रद्धा का
? अमृत माँ जिनवाणी से - १७१ ?
"बालयोगी का जीवन"
पूज्य आचार्यश्री शान्तिसागरजी महराज को चारित्र का चक्रवर्ती बनना था, इसलिए इनके बाल्य जीवन में विकृतियों पर विजय की तैयारी दिखती थी। वे बालयोगी सरीखे दिखते थे।
भोज ग्राम में जो शिक्षण उपलब्ध हो सकता था, वह इन्होंने प्राप्त किया था। इनकी मुख्य शिक्षा वीतराग महर्षियों द्वारा रचे गये, रत्नत्रय का वैभव बताने वाले शास्त्रों का स्वाध्याय के रूप में की थी।
अनुभवजन्य शिक्षा का इनके जीवन म
? अमृत माँ जिनवाणी से - १७० ?
"ग्राम के वृद्धों से महराज की जीवन सामग्री"
भोज के वृद्धजनों से तर्क-वितर्क द्वारा जो सामग्री मिली उससे पता चला, सत्पुरुषों की जननी और जनक जिस प्रकार अपूर्व गुण संपन्न होते हैं, वही विशेषता सातगौड़ा को जन्म देने वाली माता सत्यवती और भव्य शिरोमणी श्री भीमगौड़ा पाटिल के जीवन में थी।
उनका गृह सदा बड़े-२ महात्माओं, सत्पुरुषों और उज्जवल त्यागियों की चरण रज से पवित्र हुआ करता था। जब भी कोई निर्ग्रन्थ दिगंबर मुनिराज या अन्य महात्
? अमृत माँ जिनवाणी से - १६९ ?
"कर्नाटक पूर्वज भूमि"
एक दिन पूज्य शान्तिसागरजी महराज से उनके धार्मिक परिवार के विषय में चर्चा चलाई। सौभाग्य की बात है कि उस समय उनके पूर्वजों के बारे में भी कुछ बातें विदित हुई।
महराज ने बताया था कि उनके आजा का नाम गिरिगौड़ा था। उनके यहाँ सात पीढ़ी से पाटील का अधिकार चला आता है। पाटिल गाँव का मालिक/रक्षक होता है। उसे एक माह पर्यन्त अपराधी को दण्ड देने तक का अधिकार रहता है।
महराज ने यह भी बताया था
☀जय जिनेन्द्र बंधुओं,
आज हम जानते हैं चारित्र चक्रवर्ती पूज्य आचार्यश्री शान्तिसागर जी महराज के गृहस्थ जीवन का नाम तथा उनके भाई बहनों के नाम आदि।
? अमृत माँ जिनवाणी से - १६८ ?
"परिवार व् नाम संस्कार"
पूज्य आचार्यश्री शान्तिसागरजी महराज के गृहस्थ जीवन में दो ज्येष्ठ भ्राता थे, जिनके नाम आदिगोंडा और देवगोंडा थे। कुमगौड़ा नाम के अनुज थे। बहिन का नाम कृष्णा बाई था।
इनके शांत भाव के अनुरूप उन्हें "सातगौड़ा" कहते थे। वर्तमान में
? अमृत माँ जिनवाणी से - १६७ ?
"वैराग्य का कारण"
मैंने एक दिन पूज्य आचार्यश्री शान्तिसागरजी महराज से पूंछा, "महराज वैराग्य का आपको कोई निमित्त तो मिला होगा? साधुत्व के लिए आपको प्रेरणा कहाँ से प्राप्त हुई।
पुराणों में वर्णन आता है कि आदिनाथ प्रभु को वैराग्य की प्रेरणा देवांगना नीलांजना का अपने समक्ष मरण देखने से प्राप्त हुई थी।"
महराज ने कहा, "हमारा वैराग्य नैसर्गिक है। ऐसा लगता है कि जैसे यह हमारा पूर्व जन्म का संस्कार हो।
☀जय जिनेन्द्र बंधुओं,
आप सभी प्रसंग के शीर्षक को पढ़कर सोचगे कि इस प्रसंग में क्या आदेश होगा?
यह प्रसंग उस समय का है जब इस जीवनचरित्र के यशस्वी लेखक श्री दिवाकर जी इस भाव से पूज्य शान्तिसागरजी महराज के पास गए की उनके जीवनगाथा का ज्ञान प्राप्त हो और वह सभी लोगों तक पहुँचे, ताकि इन महान आत्मा के जीवन चरित्र को जानकर आगे की पीढ़ी अपना कल्याण कर सके।
प्रस्तुत प्रसंग में आप एक इतने श्रेष्ट साधक के अपने प्रति निर्ममत्व को जानकर दंग रह जाएँगे। उनके जीवन में
? अमृत माँ जिनवाणी से - १६५ ?
"दीर्घजीवन का रहस्य"
पूज्य आचार्यश्री शान्तिसागरजी महराज के योग्य शिष्य मुनि श्री १०८ वर्धमान सागरजी महराज जो गृहस्थ जीवन में पूज्य शान्तिसागरजी महराज के बड़े भ्राता भी थे तथा वर्तमान में ९२ वर्ष की अवस्था में भी व्यवस्थित मुनिचर्या का पालन कर रहे थे, ने प्रसंग वश बताया-
"संयमी जीवन दीर्घाआयु का विशेष कारण है। हम रात को ९ बजे के पूर्व सो जाते थे और तीन बजे सुबह जाग जाया करते थे। ३५ वर्ष की अवस्था में हमने ब्र
☀जय जिनेन्द्र बंधुओं,
प्रस्तुत प्रसंग में पूज्य आचार्यश्री शान्तिसागरजी महराज ने कितने सरल उदाहरण के माध्यम से बताया है कि लगातार किया जाने वाला इंद्रिय संयम का अभ्यास बेकार नहीं जाता, उसका भी महत्व अवश्य होता है।
? अमृत माँ जिनवाणी से - १६४ ?
"सतत अभ्यास का महत्व"
पूज्य आचार्यश्री शान्तिसागरजी महराज कहते थे-
"जिस प्रकार बार-बार रस्सी की रगड़ से कठोर पाषाण में गड्ढ़ा पड़ जाता है, उसी प्रकार बार-बार अभ्यास द्वारा इंद्रियाँ वसीभूत हो
? अमृत माँ जिनवाणी से - १६३ ?
"ध्यान सूत्र"
प्रश्न - महराज ! कृप्याकर बताइये, क्या आपका मन लगातार आत्मा में स्थिर रहता है या अन्यत्र भी जाता है?"
उत्तर - पूज्य शान्तिसागरजी महराज ने कहा- "हम आत्मचिंतन करते हैं। कुछ समय के बाद जब ध्यान छूटता है, तब मन को फिर आत्मा की ओर लगाते हैं।
कभी-कभी मोक्षगामी त्रेसठ शलाका पुरुषों का चिंतवन करता हूँ।"
? स्वाध्याय चारित्र चक्रवर्ती ग्रन्थ का ?
☀जय जिनेन्द्र बंधुओं,
प्रस्तुत प्रसंग से ज्ञात होता है कि किस प्रकार पूज्य शान्तिसागरजी महराज ने गृहस्थ अवस्था में ही उस समय की प्लेग जैसी भयंकर महामारी के संक्रमण की परवाह ना करते हुए अपने मित्र रुद्रप्पा का समाधिमरण कराया। अजैन व्यक्ति की भी समाधि करवाने उनके संस्कार जन्म जन्मान्तर की उत्कृष्ट साधना के परिचायक है।
हमेशा अपने जीवन में हम सभी को अच्छे लोगो की संगति रखना चाहिए क्योंकि रुद्रप्पा जैसा हम लोगों के लिए सातगौड़ा (शान्तिसागर महराज) जैसे मित्र बुराइयों से बचात
? अमृत माँ जिनवाणी से - १६१ ?
"रुद्रप्पा की समाधि"
पूज्य आचार्यश्री शान्तिसागरजी महराज के गृहस्थ जीवन के बड़े भाई, वर्तमान के मुनि श्री १०८ वर्धमान सागरजी महराज ने शान्तिसागरजी महराज के गृहस्थ अवस्था के मित्र लिंगायत धर्मावलंबी श्रीमंत रुद्रप्पा की बात सुनाई।
सत्यव्रती रुद्रप्पा वेदांत का बड़ा पंडित था। वह अत्यंत निष्कलंक व्यक्ति था। वह अपने घर में किसी से बात न कर दिन भर मौन बैठता था। कभी-कभी हमारे घर आकर आचार्य महराज से तत्वचर्चा करता और