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ओरसा ग्राम में दंश मसक परिषह - अमृत माँ जिनवाणी से - ७५


Abhishek Jain

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?     अमृत माँ जिनवाणी से - ७५     ?


      "ओरसा ग्राम में दंश-मशक परिषय"


                 आचार्यश्री शान्तिसागरजी महाराज का संघ सिद्ध क्षेत्र कुण्डलपुर के दर्शन के उपरांत दमोह आया, वहाँ दर्शन के उपरांत, वह ओरसा ग्राम गया। वहाँ एक विशिष्ट घटना हो गई।

                   आचार्य महाराज को वहाँ कष्ट ना हो, इसलिए दमोह के सेठजी ने घर को साफ कराया था। महाराज के आने पर उन्होंने कहा, "महाराज, "यह घर आपके लिए ही हमने साफ करवाया है।"

                    विशेषकर अपने निमित्त से उद्दिष्ट किये गए घर में ठहरने पर गृहस्थ द्वारा किये गए सावध कर्म का दोष इन सर्वसावध त्यागी मुनिराज पर आएगा। इससे महाराज ने उस घर को अपने ठहरने के लिए अनुपयुक्त समझा, अतएव वे रात भर बाहर की जगह में ही ठहरे। दिगंबर शरीर पर डांस मच्छरों की बाधा का अनुमान किया जा सकता है।

                जब एक मच्छर भी अपने दंश प्रहार और भनभनाहट से हमारी नीद में बाधा पहुँचा सकता है, तब अगणित डांस और मच्छर दिगंबर शरीर को कितना न त्रास देते होंगे?

               महाराज ने उस उपद्रव को साम्य भाव से सहन किया। यह दिगंबर मुनिश्री की श्रेष्ठ चर्या है। इसमें जरा भी शिथिलाचरण को स्थान नहीं है। यही कारण है कि सिंहवृत्ति को धारण करने में जगत के बड़े-२ वीर डरते हैं।

                   महावीर प्रभु के चरणों का असाधारण प्रसाद जिन महामानवों को प्राप्त हुआ है, वे ही ऐंसे कठोर व् भीषण कष्ट संकुल श्रमण जीवन को कर्म निर्जरा का अपूर्व कारण मान सहर्ष स्वीकार करते हैं।

                वे अपने हाथ से मच्छरों, डासो को भागाते भी नहीं हैं, ऐसा करने से उनकी हिंसा होती है, अतयव वे डांस शरीर का खून चूसते रहे, और ये निर्विकार भाव से इस कष्ट को सहन करते रहे, मानो यह शरीर उनका ना हो।


?  स्वाध्याय चारित्र चक्रवर्ती ग्रन्थ का  ?

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