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आचार्यश्री के घरेलू जीवन के संस्मरण - अमृत माँ जिनवाणी से - ७६


Abhishek Jain

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?     अमृत माँ जिनवाणी से - ७६     ?


    "आचार्यश्री के घरेलु जीवन के संस्मरण"


                  आचार्यश्री शान्तिसागरजी के गृहस्थ जीवन के बड़े भाई वर्धमान सागरजी महाराज ने आचार्य महाराज के बारे में इस प्रकार संस्मरण बतलाये थे:

             "मैंने उसे गोद में खिलाया, गाड़ी में खिलाया। वह हमारे साथ-साथ खेलता था। बहुत शांत था। रोता नहीं था। मैंने उसे रोते कभी नहीं देखा, न बचपन में और न बड़े होने पर। उसे कपडे बहुत अच्छे पहिनाय जाते थे। सब लोग उसे अपने यहाँ ले जाया करते थे। हमारा घर बड़ा संपन्न था।"

              "एक बार कुमगोंडा( छोटा भाई ) पानी में बह गया था, तब सब काम छोड़ महाराज ने पानी में घुस कर उसे बचाया था। कुमगोंडा की रक्षार्थ चौथी कक्षा के बाद इन्होंने पढ़ाई बंद कर दी थी।"

                   "इनकी शादी की बात आती थी, तब कहते थे कि 'मी लग्न करणार नाहीं'" (मै विवाह नहीं करूँगा), कारण की शास्त्रों में लिखा है, संसार खोटा है।' यह बात सुन हमारे माता पिता के आँसू आ गए। माता-पिता बड़े धर्मात्मा थे, इसलिए मन ही मन बहुत प्रसन्न हुए।"

          "शरीर-बल में कोल्हापुर जिले में उनकी जोड़ का कोई नहीं था। इस पर जब उनको चाँदी के कड़े इनाम देने लगे, तो इन्होंने लेने से इन्कार कर दिया था। "


?  स्वाध्याय चारित्र चक्रवर्ती ग्रन्थ का  ?

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