जय जिनेन्द्र बंधुओं,
७ फरवरी, दिन रविवार, माघ कृष्ण चतुर्दशी की शुभ तिथी को इस युग के प्रथम तीर्थंकर देवादिदेव श्री १००८ ऋषभनाथ भगवान का मोक्षकल्याणक पर्व है। हम सभी यह पर्व अत्यंत भक्ति भाव से उल्लास एवं प्रभावना पूर्वक मनाना चाहिए। हम सभी का यह प्रयास होना चाहिए कि जैन धर्म के प्रथम तीर्थंकर ऋषभनाथ भगवान की जय जयकार पूरे विश्व में गूँजने लगे।
? अमृत माँ जिनवाणी से - २६० ?
"सांगली में संघ संचालक जवेरी
बंधुओं का सम्मान"
पूज्य आचार्यश्री शान्तिसागरजी महराज के ससंघ तीर्थराज की ओर चल रहा ससंघ मंगल विहार का वर्णन चल रहा था। सांगली में संघपति जवेरी बंधुओं के सम्मान में प्रसस्ती का उल्लेख चल रहा था। आगे......
चतुर्विध संघ पूर्वकाल से तीर्थाटन के लिए निकला करते थे। इसके लिए ग्रंथों में ऐतिहासिक प्रमाण बहुत से मिलते हैं। यात्रा के निमित्त से घनी श्रावक अपना द्रव्य खर्च करते थे। संघ के विहार द्वारा उत्तरीय प्रांतों में भी जैनधर्म की यथार्थ तथा उत्कृष्ट प्रभावना हो ऐसी हमारी प्रबल इच्छा है। इसी प्रकार संघ का विहार और तीर्थयात्रा जल्दी पूरी हो और फिर से हमें इन पवित्र विभूति के दर्शन शीघ्र ही लौटने पर हों यह जिनेश्वर के समीप हमारी उत्कृष्ट भावना है।"
-समस्त श्रावक
सांगली (महा.) वीर संवत २४५४, मार्गशीर्ष वदी ५, रविवार
चाँदी के आभूषण रखने की पेटी में यह अभिनंदन पत्र भेंट किया गया था। श्रेष्ट गुरुसेवा में सर्वत्र सम्मान और आदर प्राप्त करना धर्म का ही प्रसाद है।
? स्वाध्याय चारित्र चक्रवर्ती ग्रंथ का ?
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