?गुरुदेव की पावन स्मृति - अमृत माँ जिनवाणी से - २३९
? अमृत माँ जिनवाणी से - २३९ ?
"गुरुदेव की पावन स्मृति"
पूज्य पायसागरजी महराज की अपने गुरु पूज्य शान्तिसागरजी महराज के प्रति बड़ी भक्ति थी। उनका उपकार वे सदा स्मरण करते थे।
प्रायः उनके मुख से ये शब्द निकलते थे, "मैंने कितने पाप किए? कौन सा व्यसन सेवन नहीं किया? मै महापापी ना जाने कहाँ जाता? मैं पापसागर था। रसातल में ही मेरे लिए स्थान था। मैं वहाँ ही समा जाता। मेरे गुरुदेव ने पायसागर बनाकर मेरा उद्धार कर दिया।" ऐसा कहते-कहते उनके नेत्रों में अश्रु आ जाते थे।
? स्वाध्याय चारित्र चक्रवर्ती ग्रंथ का ?
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