?मुनिश्री आदिसागर द्वारा संस्मरण - अमृत माँ जिनवाणी से - २४५
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जय जिनेन्द्र बंधुओं,
आज के प्रसंग से पूज्य शान्तिसागरजी महराज के एक प्रसंग के माध्यम से भारत वसुधरा में विराजमान सभी साधु परमेष्ठीयों के जीवन में लगातार चलने वाले धोर तपश्चरण के एक बहुत सूक्ष्म अंश का अवलोकन करने का अवसर मिलता है।
दूसरी बात हम इस तरह से सोच सकते है कि हमारे बीच से कोई सामान्य श्रावक ही आत्मबोध और जीवन के महत्व को समझकर इस तरह सुख के रास्ते पर आगे बढ़ता है। हम भी इसी तरह इंद्रिय सुखों की इच्छाओं को धीरे-२ कम करके अपने जीवन को सार्थक बना सकते हैं।
? अमृत माँ जिनवाणी से - २४५ ?
"मुनिश्री आदिसागर द्वारा संस्मरण"
शेडवाल के (श्री बालगौड़ा देवगौड़ा पाटील) परमपूज्य मुनि आदिसागर महराज का सिवनी में २७ फरवरी, १९५७ को शिखरजी आते समय आगमन हुआ था। उन्होंने आचार्यश्री शान्तिसागरजी महराज के विषय में मेरी प्रार्थना पर बातें बताई:
?फोटो खिंचवाना?
आदिसागरजी ने बताया- "एक बार मैं चिकोड़ी (बेलगाँव) में था। आचार्य महराज उस समय मुनि अवस्था में विराजमान थे। मैंने चिकोड़ी के अनेक गृहस्थों के साथ नसलापुर जाकर महराज से प्रार्थना की कि वे हमें फोटो खिंचवाने की मंजूरी प्रदान करें, जिससे हम परोक्ष में आपके दर्शन लाभ ले सकें। हमारी प्रार्थना स्वीकार हुई।
फोटोग्राफर महराज के पास आया। उसने महराज से कहा- "महराज ! अच्छी फोटो के लिए, यह जगह ठीक नहीं है। दूसरा स्थान उचित है। वहाँ चलिए।" इसके साथ ही इस प्रकार खड़े रहिए आदि विविध प्रकार के सुझाव उपस्थित किए गए। महराज अनुज्ञा देकर वचनवद्ध थे। उन्होंने फोटोग्राफर के संकेतों के अनुसार कार्य किया। फोटो तो खींच गई, किन्तु इसके बाद एक विचित्र बात हुई।"
?मन को दंड?
"उस समय महराज आहार में दूध, चावल तथा पानी के सिवाय कोई भी वस्तु आहार में नहीं लेते थे। फोटो खीचनें की स्वीकृति देने वाली मनोवृत्ति को शिक्षा देने के हेतु महराज ने एक सप्ताह के लिए दूध भी छोड दिया। बिना अन्य किसी पदार्थ के वे केवल चावल और पानी मात्र लेने लगे।"
महराज ने बताया- "हमारे मन ने फोटो खिंचवाने की स्वीकृति दे दी। इसमें हमे अनेक प्रकार की पराधीनता का अनुभव हुआ। फोटोग्राफर के आदेशानुसार हमें कार्य करना पड़ा, क्योंकि हम वचनबद्ध हो चुके थे। हमने दूध का त्याग करके अपने मन को शिक्षा दी, जिससे वह पुनः ऐसी भूल करने को उत्साहित न हो।" इस प्रकरण से महराज की लोकोत्तर मनस्विता पर प्रकाश पड़ता है।
? स्वाध्याय चारित्र चक्रवर्ती ग्रंथ का ?
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