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?संघ का उत्तरापथ की ओर प्रस्थान - अमृत माँ जिनवाणी से - २५२


Abhishek Jain

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?   अमृत माँ जिनवाणी से - २५२   ?


   "संघ का उत्तरापथ की ओर प्रस्थान"


     पूज्य आचार्यश्री शान्तिसागरजी महराज के शिखरजी की ओर ससंघ विहार के वर्णन के क्रम में आगे-

     अब "ओम नमः सिद्धेभ्यः" कह सन १९२७ की मार्गशीर्ष कृष्ण प्रतिपदा को प्रभु का स्मरण कर चतुर्विध संघ सम्मेदाचल पारसनाथ हिल की वंदनार्थ रवाना हो गया। अभी लक्ष्यगत स्थल को पहुंचने में कुछ देर है, यात्रा भी पैदल है, किन्तु पवित्र पर्वतराज की मनोमूर्ति महराज के समक्ष सदा विद्यमान रहती थी कारण दृष्टि उस ओर थी। संकल्प भी तद्रूप था। आत्मा पर्वतराज की ओर उन्मुख थी।

        प्रारम्भ में लगभग २०० नर नारीयों, साधु साध्वियों संलंकृत संघ था। आचार्यश्री शान्तिसागरजी महराज के समान निर्ग्रन्थ मुद्राधारी रत्नत्रय संलंकृत मुनित्रयी के मंगल नाम नेमिसागर महराज, वीरसागर महराज, अनंतकीर्ति महराज थे।

क्रमशः.......

? स्वाध्याय चारित्र चक्रवर्ती ग्रंथ का ?

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