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?आचार्य महराज की विशेषता - अमृत माँ जिनवाणी से - २३६


Abhishek Jain

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?   अमृत माँ जिनवाणी से - २३६   ?


          "आचार्य महराज की विशेषता"


           मुनिश्री पायसागरजी महराज ने कहा- "आचार्य महराज की मुझ पर अनंत कृपा रही। उनके आत्मप्रेम ने हमारा उद्धार कर दिया। महराज की विशेषता थी कि वे दूसरे ज्ञानी तथा तपस्वी के योग्य सम्मान का ध्यान रखते थे।

            एक बार मैं महराज के दर्शनार्थ दहीगाव के निकट पहुँचा। मैंने भक्ति तथा विनय पूर्वक उनको प्रणाम किया। महराज ने प्रतिवंदना की।" मैंने कहा- "महराज मैं प्रतिवंदना के योग्य नहीं हूँ।"

          महराज बोले- "पायसागर चुप रहो। तुम्हे अयोग्य कौन कहता है? मै तुम्हारे ह्रदय को जनता हूँ।" महराज के अपार प्रेम के कारण मेरा ह्रदय शल्य रहित हो गया। मेरे गुरु का मुझ पर अपार विश्वास था।


               ?अपार प्रायश्चित्त?

          मैंने कहा- "बहुत वर्षों से गुरुदेव आपका दर्शन नहीं मिला। मै आपके चरणों में आत्मशुद्धि के लिए आया हूँ। मैं अपने को दोषी मानता हूँ। मैं अज्ञानी हूँ। गुरुदेव आपसे प्रायश्चित की प्रार्थना करता हूँ।

          महराज ने कहा- "पायसागर ! चुप रहो। हमें सब मालूम है। तुमको प्रायश्चित्त देने की जरूरत नहीं है। आज का समाज विपरीत है। तू अज्ञानी नहीं है। तुझे अयोग्य कहता है। मैं तेरे को कोई प्रायश्चित नहीं देता हूँ। प्रायश्चित को नहीं भूलना, यही प्रायश्चित है।"


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