![Abhishek Jain](http://jain-samaj.s3.amazonaws.com/monthly_2016_04/abhi.jpg.8e6bc34e9bdf018b407c0ff179a2edb5.thumb.jpg.35cd7488e1777b3826f9231d63c27984.jpg)
"मार्मिक विनोद"
पूज्य आचार्यश्री शान्तिसागरजी महराज सदा गंभीर ही नहीं रहते थे। उनमे विनोद भी था, जो आत्मा को उन्नत बनाने की प्रेरणा देता था। कुंथलगिरि में अध्यापक श्री गो. वा. वीडकर ने एक पद्य बनाया और मधुर स्वर में गुरुदेव को सुनाया।
उस गीत की पंक्ति थी- "ओ नीद लेने वाले, तुम जल्द जाग जाना।"
उसे सुनकर महराज बोले- "तुम स्वयं सोते हो और दूसरों को जगाते हो। 'बगल में बच्चा, गाँव में टेर' -कितनी अद्भुत बात है" यह कहकर वे हसने लगे।
? स्वाध्याय चारित्र चक्रवर्ती ग्रन्थ का ?
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