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?उपयोगी उपदेश - अमृत माँ जिनवाणी से - २४६


Abhishek Jain

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?   अमृत माँ जिनवाणी से - २४६   ?


                 "उपयोगी उपदेश"


               पूज्य शान्तिसागरजी महराज ने सन १९२५ में श्रवणबेलगोला की यात्रा की थी। उस यात्रा से लौटते समय आचार्य संघ दावणगिरि में ठहरा था। बहुत से अन्य धर्मी गुरुभक्त महराज के पास रस, दूध, मलाई आदि भेंट लेकर पहुँचे। रात्रि का समय था।

         चंद्रसागरजी ने लोगों से कहा कि महराज रात्रि को कुछ नहीं लेते हैं। वे लोग बोले- "महराज गुरु हैं। जो भक्तों की इच्छा पूर्ण नहीं करते, वे गुरु कैसे?" महराज तो मौन थे। वे भद्र परिणामी भक्त रात्रि को ढोलक आदि बजाकर भजन तथा गुरु का गुणगान करते रहे।

          दिन निकलने पर महराज का बिहार हो गया। वे लोग महराज के पीछे-पीछे गए। उन्होंने प्रार्थना की- "स्वामीजी ! कम से कम लोगों को उपदेश तो दीजिए।"

       उनका अपार प्रेम तथा उनकी योग्यता आदि को दृष्टि रखकर महराज ने उन लोगों के द्वारा गाए भजन के उनके परिचित कुछ शब्दों का उल्लेख कर कहा- "इन शब्दों के अर्थ का मननपूर्वक आचरण करो और अधिक से अधिक जीव दया का पालन करो, तुम्हारा कल्याण होगा।"

           इस प्रिय वाणी को सुनकर वे बड़े प्रसन्न हुए। महराज में यह विशेषता थी कि वे समय, परिस्थिति, पात्र, आदि का विचार कर समायोजित तथा हितकारी बात कहते थे।


? स्वाध्याय चारित्र चक्रवर्ती ग्रंथ का ?

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