"शिष्यों को सन्देश"
स्वर्गयात्रा के पूर्व आचार्यश्री ने अपने प्रमुख शिष्यों को यह सन्देश भेजा था, कि हमारे जाने पर शोक मत करना और आर्तध्यान नहीं करना।
आचार्य महाराज का यह अमर सन्देश हमे निर्वाण प्राप्ति के पूर्व तक का कर्तव्य-पथ बता गया है। उन्होंने समाज के लिए जो हितकारी बात कही थी वह प्रत्येक भव में काम की वस्तु है।
?अनुमान?
पूज्य आचार्यश्री शान्तिसागरजी महाराज के चरणों में बहुत समय व्यतीत करने के कारण तथा उनकी सर्व प्रकार की चेष्टाओं का सूक्ष्म रीति से निरीक्षण करने के फलस्वरूप ऐसा मानना उचित प्रतीत होता है कि वे लौकांतिक देव हुए होंगे।
वे अलौकिक पुरुषरत्न थे, यह उनकी जीवनी से ज्ञात होता है। माता के उदर में जब ये पुरुष आये थे तब सत्यवती माता के ह्रदय में १०८ सहस्त्रदल युक्त कमलों से जिनेन्द्र भगवान की वैभव सहित पूजन करने की मनोकामना उत्पन्न हुई थी।
आज के जड़वाद तथा विषयलोलुपता के युग में उन्होंने जो रत्नत्रय धर्म की प्रभावना की है और वर्धमान भगवान के शासन को वर्धमान बनाया है उससे तो ये भावी जिनेश्वर के नंदन सदृश लगते रहे हैं। हमारी तो यही धारणा है कि लौकांतिक देवर्षि की अवधि पूर्ण होने के पश्चात् ये धर्मतीर्थंकर होंगे।
? स्वाध्याय चारित्र चक्रवर्ती ग्रन्थ का ?
- Read more...
- 0 comments
- 381 views