?संघ का उत्तरापथ की ओर प्रस्थान - अमृत माँ जिनवाणी से - २५१
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जय जिनेन्द्र बंधुओं,
पूज्य आचार्यश्री शान्तिसागरजी महराज की ससंघ शिखरजी यात्रा का वर्णन चल रहा है। पूज्यश्री के जीवन से संबंधित हर एक बात निश्चित ही हम सभी भक्तों को आनंद से भर देती है।
आप सोच सकते हैं कि पूज्यश्री के जीवन चारित्र को जानने में संघस्थ सभी व्रती श्रावकों के उल्लेख की क्या आवश्यकता? इस संबंध में मेरा सोचना है कि ऐसे श्रावक जो पूज्यश्री के साथ में चले तथा उनकी द्वारा संयम ग्रहण कर मोक्षमार्ग मार्ग पर आगे बढे उनके बारे में भी जानना अपने आप में हर्ष का विषय है।
इन प्रसंग को पढ़ने वाले दक्षिण के कुछ पाठकों के तो निम्न संयमीजन पूर्वज भी होंगे। पढ़कर उनको स्मरण आएगा।
? अमृत माँ जिनवाणी से - २५२ ?
"संघ का उत्तरापथ की ओर प्रस्थान"
शिखरजी यात्रा विवरण में आगे....
पायसागर नाम से भूषित ऐलक पदाधिष्ठित तीन श्रेष्ठ श्रावक ऐनापुर, गोकाक तथा शियापुर के थे। नाम और पद में तीनों समान थे। क्षुल्लक मल्लीसागर गलतगेवाले, क्षुल्लक पायसागरजी जलगाव वाले व क्षुल्लक अनंतकीर्ति करवी शियापुर वाले भी थे।
क्षुल्लिका माता शांतमति, बा.ब्र. क्षु. चंद्रमति, क्षु. अनंतमती नाम की तीन क्षुल्लीकाए थी। एक ब्रम्हचारिणी बाई थीं। ब्र. दादा घोंदे सांगली वाले, ब्र. आणप्प लिंगड़े, ब्र. महैसलकर, ब्र. पारिसप्पा घोंदे, ब्र. पायसागरजी उजारकर, ब्र. देवप्पना, ब्र. देवलाल ग्वालियर, ब्र. हजारीलाल एटा नाम के ८ ब्रम्हचारी बंधु थे। पंडित नंदनलालजी बैद्य भी साथ में थे। कुछ समय पश्चात वे भी महानुभाव निर्ग्रन्थ दीक्षा लेकर रत्नत्रय औषधि देकर आत्मा के रोग को दूर करते हुए आध्यात्मिक वैद्य के रूप में सुधर्मसागर महराज नाम से सर्वत्र विख्यात हुए।
पंडित उल्फत रायजी रोहतक वाले, कीर्तनकार श्री जिनगौड़ा पाटील मांगूकर, श्री गंगाराम आरवाडे कोल्हापुर, परवारभूषण ब्र. फतेचंदजी नागपुर वाले भी साथ में थे।
? स्वाध्याय चारित्र चक्रवर्ती ग्रंथ का ?
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