![Abhishek Jain](http://jain-samaj.s3.amazonaws.com/monthly_2016_04/abhi.jpg.8e6bc34e9bdf018b407c0ff179a2edb5.thumb.jpg.35cd7488e1777b3826f9231d63c27984.jpg)
'क्लांत पुरुष को लादकर राजगिरी की वंदना'
शिखरजी की वंदना जैसी घटना राजगिरी के पञ्च पहाड़ियों की यात्रा में हुई।
वहाँ की वंदना बड़ी कठिन लगती है। कारण वहाँ का मार्ग पत्थरो के चुभने से पीढ़ाप्रद होता है।
जैसे यात्री शिखरजी आदि की अनेक वंदना करते हुए भी नहीं थकता है, वैसी स्थिति राजगिर में नहीं होती है। यहाँ पांचों पर्वतों की वंदना एक दिन में करने वाला अपने को धन्यवाद देता है।
महाराज ने देखा कि एक पुरुष अत्याधिक थक गया है और उसके पैर आगे नहीं बड़ रहे हैं।
उस पहाड़ी पर चढ़ते समय बलवान आदमी भी थकान तथा कठिनता का अनुभव करता है,किन्तु इन बली महात्मा ने उस पुरुष को पीठ पर रखकर वंदना करा दी।
इससे बाह्य दृष्टि वाले इनके शारीरिक बल की महत्ता आंकते हैं, किन्तु हमे तो इनके अंतःकरण तथा आत्मा की अपूर्वता एवं विशालता का परिज्ञान होता है।
? स्वाध्याय चारित्र चक्रवर्ती ग्रन्थ का ?
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