![Abhishek Jain](http://jain-samaj.s3.amazonaws.com/monthly_2016_04/abhi.jpg.8e6bc34e9bdf018b407c0ff179a2edb5.thumb.jpg.35cd7488e1777b3826f9231d63c27984.jpg)
"लोकस्मृति-१"
पूज्य शान्तिसागरजी महराज के गृहस्थ जीवन के बड़े भाई जो उस समय वर्धमानसागर के रूप में थे ने बताया, "हमारे माता-पिता महान धार्मिक थे। धार्मिक पुत्र सातगौड़ा अर्थात महराज पर उनकी विशेष अपार प्रीति थी। महराज जब छोटे शिशु थे, तब सभी लोगों का उन पर बड़ा स्नेह था। वे उनको हाँथो-हाथ लिए रहते थे। वे घर में रह ही नहीं पाते थे।
मैंने पूंछा, "स्वामिन् संसार के उद्धार करने वाले महापुरुष जब माता के गर्भ में आते हैं, तब कुछ शुभ-शगुन कुटुम्बियों आदि को दिखते हैं? माता को भी मंगल स्वप्न आदि का दर्शन होता है। आचार्य महराज सदृश रत्नत्रय धारकों की चूडामणि रूप महान विभूति का जन्म कोई साधारण घटना नही है। कुछ ना कुछ अपूर्व बात अवश्य हुई होगी?"
उन्होंने बताया, "उनके गर्भ में आने पर माता को दोहला हुआ था कि एक सहस्त्र दल वाले एक सौ आठ कमलों से जिनेन्द्र भगवान को पूजा करूँ। यह वृत्तान्त प्रसंग क्रमांक १८ में भी दिया गया है।
? स्वाध्याय चारित्र चक्रवर्ती ग्रंथ का ?
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