?गुरु प्रभावशाली व्यक्तित्व - अमृत माँ जिनवाणी से - २४७
? अमृत माँ जिनवाणी से - २४७ ?
"गुरु प्रभावशाली व्यक्तित्व"
मुनिश्री आदिसागरजी महराज ने पूज्य शान्तिसागरजी महराज के गुरु के बारे में बताया कि "देवप्पा स्वामी का ब्रम्हचर्य बड़ा उज्ज्वल था। वे सिद्धिसम्पन्न सत्पुरुष थे। मैंने गोकाक में उनकी गौरवगाथा सुनी थी। उनकी प्रमाणिकता का निश्चय भी किया था।
वे गोकाक से कोंनुर जा रहे थे। वहाँ की भीषण पहाड़ी पर ही सूर्यास्त हो गया। उनके साथ एक उपाध्याय था। उसे कुग्गुड़ी पंडित कहते थे। स्वामी ने एक चक्कर खीचकर उपाध्याय को उसके भीतर सूर्योदय पर्यन्त रहने को कहा और वे भी उस घेरे के भीतर ध्यान के लिए बैठ गए।"
?शेर की गर्जना?
रात्रि होने पर एक भयानक शेर वहाँ आया। उसने खूब गर्जना की, उपद्रव किए, किन्तु व्याघ्र घेरे के भीतर ना घुस सका। भय से उपाध्याय का बुरा हाल था, फिर भी वह घेरे से बाहर नहीं गया। दिन निकलने के बाद स्वामी कोन्नूर पहुँचे, तब उपाध्याय ने सब जगह उपरोक्त कथा सुनाई। इससे देवप्पा स्वामी का महत्व सूचित होता है। शुद्ध मुनिपद धारण कर उनकी आत्मा बहुत विकसित हुई।
? स्वाध्याय चारित्र चक्रवर्ती ग्रंथ का ?
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