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?सांगली - अमृत माँ जिनवाणी से - २५६


Abhishek Jain

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?   अमृत माँ जिनवाणी से - २५६   ?


                     "सांगली"


           अब संघ सांगली रियासत में आ गया। मार्गशीर्ष बदी सप्तमी को सांगली राज्य के अधिपति श्रीमंत राजा साहब, महराज के दर्शनार्थ पधारे, इन्होंने अवर्णनीय आनंद प्राप्त किया। आचार्य महराज के सच्चे धर्म का स्वरूप बताते हुए राजधर्म पर प्रकाश डाला।

         सच्चे क्षत्रिय को यह जानकर बड़ा हर्ष होता है कि जैन धर्म का प्रकाश फैलाने का श्रेय जिन तीर्थंकर को था वे क्षत्रिय कुलावतंस ही थे। अहिंसा के ध्वज को सम्हालने वाले क्षत्रिय वीर ही रहे हैं।

          इस बात के प्रमाण वैदिक साहित्य में प्राप्त होते है कि पशु बलिदान का मार्ग ब्रम्हा  ज्ञाता कहे जाने वाले ब्राम्हणो द्वारा पोषित था और अहिंसा को परमधर्म बता प्रेम की गंगा प्रवाहित करने का श्रेय पराक्रमी क्षत्रिय नरेशों को था। यह महत्व के साथ-२ आश्चर्य की भी बात थी, कि जिस वीर हाथ में यम की जिह्वा समान लपलपाती तलवार रहती थी वह जीवन का मूल्य जान जीवों को अभय देता था और जो ब्रम्हा की बातें बताते थे, वे जीवों को अग्नि में स्वाहा करने का जाल फैलाते थे।


? स्वाध्याय चारित्र चक्रवर्ती ग्रंथ का ?

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