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?सांगली में संघ संचालक जवेरी बंधुओं का सम्मान - अमृत माँ जिनवाणी से - २५९


Abhishek Jain

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?   अमृत माँ जिनवाणी से - २५९   ?


       "सांगली में संघ संचालक जवेरी 
                बंधुओं का सम्मान"


               पूज्य आचार्यश्री शान्तिसागरजी महराज का उपदेश सुनकर सांगली नरेश की आत्मा बड़ी हर्षित हुई। धर्म के अनुसार आचरण करने वाले महापुरुषों की वाणी का अंतःस्थल तक प्रभाव पड़ा करता है, कारण धर्म अंतःकरण की वस्तु है। अंतःकरण जब धर्माधिष्ठित हो जाता है, तब प्रवृत्ति में भी उसकी अभियक्ति हुए बिना नहीं रहती।

        सांगली के समस्त श्रावकों ने संघ संचालक जवेरी बंधुओ का सम्मान करते हुए निम्नलिखित अभिनंदन पत्र भेंट दिया:

"श्रीमान जिनभक्ति परायण सेठ पूनमचंद घासीलालजी जवेरी, मुम्बई, के प्रति हम सांगली के समस्त दिगम्बरी श्रावक मिलकर आपको भारी आनंद के साथ यह मान पत्र देते हैं।

         श्री १०८ शान्तिसागर महराज व उनके संघ को साथ में लेकर आप परम पूज्य श्री शिखरजी क्षेत्र की वंदना करने निकले हैं, आप अपने न्यायोपार्जित धन को ऐसे पुण्य कार्यों में खर्च करते हैं और सातिशय पुण्य को बंध रहे हैं, इसको देख हमको अत्यंत आनंद हो रहा है।

            इधर कुछ समय से दिगम्बर साधुओं के संघ दृष्टिगोचर नहीं हो पा रहे थे, सो अब साक्षात दर्शन हो रहा है। शुद्धि चारित्र को पालने वाले मुनि, ऐलक, क्षुल्लक, ब्रम्हचारी, आदि सभी जन आचार्यश्री शान्तिसागरजी महराज के अन्नय भक्त बन रहे हैं और गुरुसेवा में तत्पर हैं। इसीलिए संघ को, चतुर्थकाल में होने वाले संघ की उपमा प्राप्त हो रही है। ऐसे अपूर्व दिगम्बर संघ की अनन्य भावों से सेवा करने के लिए आप तैयार हुए हैं, इसलिए हम आपका अभिनंदन करते हैं।

क्रमशः......


? स्वाध्याय चारित्र चक्रवर्ती ग्रंथ का ?

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