?साधु विरोधी आंदोलन के संबंध में - अमृत माँ जिनवाणी से - २४४
? अमृत माँ जिनवाणी से - २४४ ?
"साधु विरोधी आंदोलन के संबंध में"
एक दिन पूज्य शान्तिसागरजी महराज के योग्य शिष्य पूज्य वर्धमान सागरजी कहने लगे- "आजकल साधु के चरित्र पर पत्रों में चर्चा चला करती है। उनके विद्यमान अथवा अविद्यमान दोषों का विवरण छपता है। इस विषय में उचित यह है कि अखबारों में यह चर्चा न चले, ऐसा करने से अन्य साधुओं का भी अहित हो जाता है।
मार्ग-च्युत साधु के विषय में समाज में विचार चले, किन्तु पत्रों में यह बात न छपे। इससे सन्मार्ग के दोषी लोग अपना स्वार्थ सिद्ध करते हैं। उन्होंने यह भी कहा था- "कि किसी भी साधु का आहार बंद नहीं करना चाहिए।"
महराज ने कहा था- "मुनि धर्म बहुत कठिन है। मुनि होकर पैर फिसला, तो भयंकर पतन होता है। नेत्रों को जाग्रत रखना चाहिए। ज्ञान आदि की बातों में चूक हो गई, तो उतनी हानि नहीं होती, जितनी संयम-पालन में प्रमाद करने पर होती है।
तलवार की धार पर सम्हलकर पैर रखा, तो ठीक है, नहीं तो पैर नियम से कट जाता है। मुनिपद में चारित्र को बराबर पालना चाहिए।"
? स्वाध्याय चारित्र चक्रवर्ती ग्रंथ का ?
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