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?एकांतवास से प्रेम - अमृत माँ जिनवाणी से - १५१


Abhishek Jain

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?    अमृत माँ जिनवाणी से - १५१    ?


              "एकांतवास से प्रेम"

   
         आचार्य महाराज को एकांतवास प्रारम्भ से ही प्रिय लगता रहा है। भीषण स्थल पर भी एकांतवास पसंद करते थे। वे कहते थे- "एकांत भूमि में आत्मचिंतन और ध्यान में चित्त खूब लगता है।"

          जब महराज बड़वानी पहुँचे थे, तो बावनगजा(आदिनाथ भगवान की मूर्ति) के पास के शांतिनाथ भगवान के चरणों के समीप अकेले रात भर रहे थे। किसी को वहाँ नहीं आने दिया था। साथ के श्रावकों को पहले ही कह दिया था, आज हम अकेले ही ध्यान करेंगे।


             ?बढ़िया ध्यान?


             पूज्यश्री की यह विशेषता रही है कि जहाँ एकांत रहता था, वहाँ उनका ध्यान बढ़िया होता था, किन्तु जहाँ एकांत नहीं रहता था, वहाँ भी उनका ध्यान सम्यक प्रकार से संपन्न हुआ करता था।

          उनका अपने मन पर पूर्ण अधिकार हो चुका था। इंद्रियाँ उनकी आज्ञाकारिणी हो गई थी। अतः उनकी आत्मा आदेश देती थी, वैसी ही स्थिति इंद्रिय तथा मन उपस्थित कर देते थे।


?  स्वाध्याय चारित्र चक्रवर्ती ग्रन्थ का  ?

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