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?दयापूर्ण दृष्टि - अमृत माँ जिनवाणी से - १३९


Abhishek Jain

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?    अमृत माँ जिनवाणी से - १३९    ?

     
                 "दयापूर्ण दॄष्टि"


                लोग पूज्य आचार्यश्री शान्तिसागरजी महाराज को आहार देने में गड़बड़ी किया करते थे, इस विषय में मैंने(लेखक ने) श्रावकों को समझाया कि जिस घर में महराज पड़गाहे जाए, वहाँ दूसरों को अनुज्ञा के नहीं जाना चाहिए, अन्यथा गड़बड़ी द्वारा दोष का संचय होता है। मै लोगों को समझा रहा था, उस प्रसंग पर आचार्यश्री की मार्मिक बात कही थी।

         महाराज बोले- "यदि हम गडबड़ी को बंद करना चाहें, तो एक दिन में सब ठीक हो सकता है। यदि एक घर के भोज्य पदार्थ का नियम ले लिया, तब क्या गडबड़ी होगी? लोगों का मन न  दुखे और हमारा कार्य हो जाए, हम ऐसा कार्य करते हैं।


?  स्वाध्याय चारित्र चक्रवर्ती ग्रन्थ का  ?

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