?शिष्यों को हितोपदेश - अमृत माँ जिनवाणी से - १५९
☀जय जिनेन्द्र बंधुओं,
प्रस्तुत प्रसंग में पूज्य शान्तिसागरजी महराज एक गृहस्थ श्रावक को संबोधित कर रहे हैं। हम सभी यह पढ़कर यह अनुभव कर सकते है कि आचार्यश्री हम सभी को ही व्यक्तिगत रूप से यह बातें कह रहे हैं।
वास्तव में पूज्यश्री की यह देशना भी सभी श्रद्धावान श्रावकों के लिए ही है।
? अमृत माँ जिनवाणी से - १५९ ?
"शिष्य को हितोपदेश"
एक बार पूज्य आचार्यश्री शान्तिसागरजी महराज अपने एक भक्त को समझा रहे थे- "तुम घर में रहते हुए भी एकांत में रहा करो। जहाँ भीड़ हो, वहाँ नहीं रहना, ध्यान, स्वाध्याय करना। दीक्षा लेना। घर में नहीं मरना।
मनुष्य भव बार-२ नहीं मिलता है। मोह ने जीव को पछाड़ दिया है। अब उस मोह को पछाड़ना चाहिए। अतः सल्लेखना लेकर ही मरण करना।
? स्वाध्याय चारित्र चक्रवर्ती ग्रन्थ का ?
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