?कुंथलगिरी पर्युषण - अमृत माँ जिनवाणी से - १३७
? अमृत माँ जिनवाणी से - १३७ ?
"कुंथलगिरी पर्यूषण"
कुंथलगिरी में पूज्य आचार्य शान्तिसागर महाराज के चातुर्मास में पर्यूषण पर्व पर तारीख १२ सितम्बर सन् १९५३ से तारीख २६ सितम्बर सन् १९५३ तक रहने का पुण्य सौभाग्य मिला था। उस समय आचार्यश्री ने ८३ वर्ष की वय में पंचोपवास् मौन पूर्वक किए थे। इसके पूर्व भी दो बार पंचोपवास् हुए थे। करीब १८ दिन तक उनका मौन रहा था। भाद्रपद के माह भर दूध का भी त्याग था। पंचरस तो छोड़े चालीस वर्ष हो गए।
?घोर तप?
प्रश्न - "महाराज ! घोर तपश्या करने का क्या कारण है?"
उत्तर - "हम समाधीमरण की तैयारी कर रहे हैं। सहसा आँख की ज्योति चली गई, तो हमे उसी समय समाधि की तैयारी करनी पड़ेगी। कारण, उस स्थिति में समीति नहीं बनेगी, अतः जीवरक्षा का कार्य नहीं बनेगा। हम तप उतना ही करते हैं, जितने में मन की शांति बनी रहे।"
? स्वाध्याय चारित्र चक्रवर्ती ग्रन्थ का ?
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