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?गृहस्थ जीवन पर चर्चा - अमृत माँ जिनवाणी से - १४५


Abhishek Jain

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?    अमृत माँ जिनवाणी से - १४५    ?


             "गृहस्थ जीवन पर चर्चा"


         अपने विषय में पूज्य शान्तिसागरजी महाराज ने कहा- "हम अपनी दुकान में ५ वर्ष बैठे। हम तो घर के स्वामी के बदले में बाहरी आदमी की तरह रहते थे।"


             ?उदास परिणाम?


         उनके ये शब्द बड़े अलौकिक हैं- "जीवन में हमारे कभी भी आर्तध्यान, रौद्रध्यान नहीं हुए। घर में रहते हुए हम सदा उदास भाव में रहते थे। हानि-लाभ, इष्ट-वियोग, अनिष्ट-संयोग आदि के प्रसंग आने पर भी हमारे परिणामों में कभी भी क्लेश नहीं हुआ।"

     "हमने घर में ५ वर्ष पर्यन्त एकासन की और ५ वर्ष पर्यन्त धारणा-पारणा अर्थात एक उपवास, एक आहार करते रहे"।


?  स्वाध्याय चारित्र चक्रवर्ती ग्रन्थ का  ?

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