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?सुख का रहस्य - अमृत माँ जिनवाणी से - १४६


Abhishek Jain

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?    अमृत माँ जिनवाणी से - १४६    ?


                   "सुख का रहस्य"


             एक व्यक्ति ने पूज्य शान्तिसागरजी महाराज के समक्ष प्रश्न किया- "महाराज ! आपके बराबर कोई दुखी नहीं है। कारण आपके पास सुख के सभी साधनों का अभाव है।"

       महराज ने कहा, "वास्तव में जो पराधीन है वह दुखी हैं। जो स्वाधीन हैं वह सुखी है। इंद्रियों का दास दुखी है। 

          हम इंद्रियों के दास नहीं हैं। हमारे सुख की तुम क्या कल्पना कर सकते हो? इंद्रियों से उत्पन्न सुख मिथ्या है। आत्मा के अनुभव द्वारा प्राप्त सुख की तुलना में वह नगण्य है।"


? स्वाध्याय चारित्र चक्रवर्ती ग्रन्थ का ?

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