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?पार्श्वमती अम्मा - अमृत माँ जिनवाणी से - १५५


Abhishek Jain

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☀जय जिनेन्द्र बंधुओं,

          प्रस्तुत कथन में लोकोत्तर व्यक्तित्व पूज्य शांतिसागरजी महराज को पुत्र के रूप में जन्म देनी वाली माँ का उल्लेख क्षुल्लिकाश्री पार्श्वमति माताजी ने किया है।

         निश्चित ही एक परम् तपस्वी निर्ग्रंथराज को जनने वाली माँ के जीवन चरित्र को जानकर भी अद्भुत आनंद अनुभूति होना स्वाभाविक बात है। उनकी माँ की जीवन शैली को जाकर लगता है कि एक चारित्र चक्रवर्ती बनने वाले मनुष्य को जन्म देनी वाली माता का जीवन कैसा रहता होगा।


?    अमृत माँ जिनवाणी से - १५५    ?


               "पार्श्वमती अम्मा"


           पूज्य आचार्यश्री शान्तिसागरजी महराज के लोकोत्तर जीवन-निर्माण में उनके माता-पिता की श्रेष्ठता को भी एक कारण कहना अनुचित नहीं होगा। पश्चिम के विद्वान, व्यक्ति की उच्चता में माता को विशेष कारण मानते हैं। नेपोलियन का जीवन उनकी माता से बहुत प्रभावित था। 

            पूज्य शान्तिसागरजी महाराज की गृहस्थ जीवन में माँ सत्यवती की जीवनी लोकोत्तर थी, जिस जननी ने आचार्य शान्तिसागर और महामुनि वर्धमान सागर सदृश दो दिगंबर श्रेष्ठ तपस्वियों को जन्म दिया। ऐसे मुनियों की माँओं की तुलना योग्य कौन जननी हो सकती है? माता सत्यवती से क्षुल्लिका पार्श्वमती अम्मा का घनिष्ठ सम्बन्ध रहा था।

?माता सत्यवती का उज्जवल चरित्र?

               उक्त अम्मा ने हमें कुंथलगिरि में माता सत्यवती आदि के विषय में कुछ महत्वपूर्ण बातें सुनाई थीं। वे कहती थी- 

              माता सत्यवती बहुत भोली, मंदकषायी, साध्वी तथा अत्यंत सरल स्वाभाव वाली थी। प्रति दिवस एकासन करती थीं। पति की मृत्यु के पश्चात् केश कटवाकर माता ने वैधव्य दीक्षा ली थी। सफेद वस्त्र पहनती थी। यथार्थ में माता पिच्छीरहित आर्यिका सदृश थी। माता की आदत शास्त्र चर्चा करने की थी। 

            महराज तथा कुमगोडा माता को शास्त्र सुनाते थे। माता बहुत उदार थी। उनके घर में सदा अतिथि सत्कार हुआ करता था।


?  स्वाध्याय चारित्र चक्रवर्ती ग्रन्थ का  ?

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