?हमारी कर्तव्य विमुखता - अमृत माँ जिनवाणी से - १५६
? अमृत माँ जिनवाणी से - १५६ ?
"हमारी कर्तव्य-विमुखता"
आज के राजनैतिक प्रमुखों के क्षण-क्षण की वार्ता किस प्रकार पत्रों में प्रगट होती है, वैसी यदि सूक्ष्मता से इस महामना मुनिराज की वार्ताओं का संग्रह किया होता, तो वास्तव में विश्व विस्मय को प्राप्त हुए बिना नहीं रहता।
पाप प्रचुर पंचमकाल में सत्कार्यों के प्रति बड़े-२ धर्मात्माओं की प्रवृत्ति नहीं होती है। वे कर्तव्य पालन में भूल जाते हैं।
कई वर्षों से मैं प्रमुख लोगों से, जैन महासभा के कार्यकर्ताओं आदि से, पत्र द्वारा अनुरोध करता था कि आचार्य महराज के उपदेशों को रिकार्ड किया जाना चाहिए, किन्तु आज करते हैं, कल करते हैं, ऐसा करते-करते वह आध्यात्मिक सूर्य हमारे क्षेत्र की अपेक्षा अस्तंगत हो गया, यद्यपि उस सूर्य का उदय स्वर्गलोक में हुआ है।
? स्वाध्याय चारित्र चक्रवर्ती ग्रंथ का ?
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