?संयमी का महत्व - अमृत माँ जिनवाणी से - १६०
? अमृत माँ जिनवाणी से - १६० ?
"संयमी का महत्व"
संयमी पुरुषों की दृष्टि में संयम तथा संयमी का मूल्य रहा है। पूज्य आचार्यश्री शान्तिसागरजी महराज को भी संयम व् संयमी का बड़ा मूल्य रहा है।
एक दिन पूज्य शान्तिसागरजी महराज अपने क्षुल्लक शिष्य सिद्धसागर (भरमप्पा) से कह रहे थे- तेरे सामने मै चक्रवर्ती की भी कीमत नहीं करता। लोग संयम का मूल्य समझते नहीं हैं।
जो पेट के लिए भी दीक्षा लेते हैं, वे तप के प्रभाव से स्वर्ग जाते हैं, तूने तो कल्याणार्थ संयम धारण किया है। तू निश्चय से स्वर्ग जाएगा, इसमें रत्ती भर शंका मत कर।"
? स्वाध्याय चारित्र चक्रवर्ती ग्रन्थ का ?
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