?मृत्यु से युद्ध की तैयारी - अमृत माँ जिनवाणी से - १३२
☀जय जिनेन्द्र बंधुओं,
अभी तक पूज्य आचार्यश्री शान्तिसागरजी महाराज की सल्लेखना के प्रसंगों का वर्णन चल रहा था। शांति के इन सागर की गुणगाथा जितनी भी गाई जाए उतनी कम है। अब हम उनके जीवन चरित्र के अन्य ज्ञात विशेष प्रसंगों के जानेंगे।
आज का प्रसंग बहुत महत्वपूर्ण है, इस प्रसंग को जानकर आपका मानस निर्ग्रन्थ साधु की सूक्ष्म अहिंसा पालन की भावना को जानकर उनके प्रति भक्ति की भावना के साथ अत्यंत आनंद का अनुभव करेगा।
? अमृत माँ जिनवाणी से - १३२ ?
"मृत्यु से युद्ध की तैयारी"
पूज्य आचार्यश्री शान्तिसागरजी महाराज का जीवन बड़ा व्यवस्थित और नियमित रहा था। यम-समाधि के योग्य अपने मन को बनाने के लिए उन्होंने खूब तैयारी की थी। लोणंद से जब आचार्य महाराज फलटण आये, तब उन्होंने जीवन भर अन्न का परित्याग किया था। कुंथलगिरि पहुँचकर उन्होंने अधिक उपवास शुरू कर दिए थे।
श्रावण वदी प्रथमा से उन्होंने अवमौदर्य तप का अभ्यास प्रारम्भ कर दिया था। महाराज ने एक ग्रास पर्यन्त आहार को घटा दिया था। वे कहने लगे- "यदि प्रतिदिन दो ग्रास भी आहार लें तो यह शरीर बहुत दिन चलेगा। यदि केवल दूध लेंगे तो शरीर वर्षों टिकेगा।"
?धन्य हैं ऐसे मुनिराज ?
जब प्राणी संयम नहीं पल सकता है, तब इस शरीर के रक्षण द्वारा असंयम का पोषण क्यों किया जाए? जिस अहिंसा महाव्रत की प्रतिज्ञा ली थी, उसको दूषित क्यों किया जाए ? व्रतभ्रष्ट होकर जीना मृत्यु से भी बुरा है। व्रत रक्षण करते हुए मृत्यु का स्वागत परम उज्जवल जीवन तुल्य है इस धारणा ने, इस पुण्य भावना ने, उन साधुराज को यम समाधि की और उत्साहित किया था।
? स्वाध्याय चारित्र चक्रवर्ती ग्रन्थ का ?
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