?देव पर्याय की कथा - अमृत माँ जिनवाणी से - १३१
? अमृत माँ जिनवाणी से - १३१ ?
"देव पर्याय की कथा"
लेखक पंडित सुमेरचंदजी दिवाकर ने पूज्य आचार्यश्री शान्तिसागर के उत्कृष्ट सल्लेखना के उपरांत स्वर्गारोहण के पश्चात् अपनी कल्पना के आधार पर उनके स्वर्ग की अवस्था का बहुत ही सुन्दर वर्णन किया हैं-
औदारिक शरीर परित्याग के अन्तर्मुहूर्त के भीतर ही उनका वैक्रियिक शरीर परिपूर्ण हो गया और वे उपपाद शैय्या से उठ गए। उस समय उन्होंने विचार किया होगा कि यह आनंद और वैभव की सामग्री कहाँ से आ गई?
अवधि ज्ञान से उनको ज्ञात हुआ होगा कि मैंने कुंथलगिरि सिद्धक्षेत्र पर यम सल्लेखनापूर्वक अपने शरीर का संयम सहित त्याग किया था उससे मुझे यह देव पर्याय प्राप्त हुई है। इस ज्ञान के पश्चात् वे आनंद पूर्ण वाद्ययंत्र तथा जयघोष सुनते हुए सरोवर में स्नान करते हैं और आनंदपूर्वक जिनेन्द्र भगवान की अकृतिम रत्नमय प्रतिमाओं के दर्शन, अभिषेक व् पूजन में मग्न हो जाते हैं।
? स्वाध्याय चारित्र चक्रवर्ती ग्रन्थ का ?
0 Comments
Recommended Comments
There are no comments to display.