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?विनोद में भी संयम की प्रेरणा -२ - अमृत माँ जिनवाणी से - १३४


Abhishek Jain

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?    अमृत माँ जिनवाणी से - १३४    ?


          "विनोद में संयम की प्रेरणा -२"


            आचार्यश्री शान्तिसागरजी महाराज की प्रत्येक चेष्ठा संयम को प्रेरणा प्रदान करती थी। उनको विनोद में भी आत्मा को प्रकाश दायिनी सामग्री मिला करती थी। 

                 २८ अगस्त ५५ को क्षुल्लक सिध्दसागर की दीक्षा हुई थी। नवीन क्षुल्लक जी ने महाराज के चरणों में आकर प्रणाम किया और महाराज से क्षमायाचना की।

     महाराज बोले- "भरमा ! तुमको तब क्षमा करेंगे, जब तुम निर्ग्रन्थ दीक्षा लोगे।"

             ऐसी ही कल्याणकारी मधुर वार्ता एक कोल्हापुर के भक्त बाबूलाल मार्ले की है जो हम पहले देख चुके है। 

            जब पूज्य आचार्यश्री शान्तिसागर जी महाराज का कमण्डलु पकड़ने का प्रसंग आया तो पूज्यश्री ने संयम की प्रेरणा देते हुए विनोदवश कहा "यदि दीक्षा लेने की प्रतिज्ञा करने का इरादा हो, तो कमण्डलु लेना, नहीं तो हम अपना कमण्डलु स्वयं उठवेंगे।"

      वे श्रावक बोले- "महाराज ! कुछ वर्षो के बाद अवश्यमेव मै क्षुल्लक की दीक्षा लूँगा। महाराज को संतोष हुआ।

     उस व्यक्ति की होनहार अच्छी होने से उसने कहा- "महाराज, मै सप्तम प्रतिमा लेता हूँ।


?  स्वाध्याय चारित्र चक्रवर्ती ग्रन्थ का  ?

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