आचार्यश्री का स्वर्ग प्रयाण - अमृत माँ जिनवाणी से - १२४
? अमृत माँ जिनवाणी से - १२४ ?
?आचार्यश्री का स्वर्ग प्रयाण?
आचार्यश्री शान्तिसागरजी महाराज के सल्लेखनारत अब तक ३५ दिन निकल गए थे, रात्री भी व्यतीत हो गई। नभोमंडल में सूर्य का आगमन हुआ। घडी में ६ बजकर ५० मिनिट हुए थे जब चारित्र चक्रवर्ती साधु शिरोमणी पूज्य क्षपकराज आचार्यश्री शान्तिसागरजी महाराज ने स्वर्ग को प्रयाण किया।
वह दिन रविवार था। अमृतसिद्धि योग था। १८ सितम्बर भादों सुदी द्वितीया का दिन था। उस समय हस्त नक्षत्र था।
?धर्मसूर्य का अस्तंगत?
मै तुरंत पर्वत पर पहुँचा। कुटी में जाकर देखा। वहाँ आचार्य महाराज नहीं थे। चारित्र चक्रवर्ती गुरुदेव नहीं थे। आध्यात्मिकों के चूड़ामणि क्षपकराज नहीं थे। धर्म के सूर्य नहीं थे। उनकी पावन आत्मा ने जिस शरीर में ८४ वर्ष निवास किया था, केवल वह पौद्गलिक शरीर था। वही कुटी थी किन्तु अमरज्योति नहीं थी। ह्रदय में बड़ी वेदना हुई।
?गहरी मनोवेदना?
प्रत्येक के ह्रदय में गहरी पीडा उत्पन्न हो गई। बंध के मूल कारण बंधु का यह वियोग नहीं था। अकारण बंधु, विश्व के हितैषी आचार्य परमेष्ठी का यह चिर वियोग था।
मनोव्यथा को कौन लिख सकता है, कह सकता है, बता सकता है। कंठ रुंध गया था। वाणी-विहीन ह्रदय फूट-फूट कर रोता था। आसपास की प्रकृति रोती सी लगती थी। पर्वत का पाषाण भी रोता-सा दिखता था। आज कुंथलगिरी ही नहीं सारा भारतवर्ष सचमुच अनाथ हो गया, उसके नाथ चले गए। हमारे स्वछन्द जीवन पर संयम की नाथ लगाने वाले चले गए।
आँखों से अश्रु का प्रवाह बह चला। आज हमारी आत्मा के गुरु सचमुच में यहाँ से प्रयाण कर गए। शरीर की आकृति अत्यंत सौम्य थी, शांत थी। देखने पर ऐसा लगता था कि आचार्य शान्तिसागर महाराज गहरी समाधि में लीन हैं, किन्तु वहाँ शान्तिसागर महाराज नहीं थे। वे राजहंस उड़कर सुरेन्द्रों के साथी बन गए थे।
?३६वाँ अंतिमदिन - १८ सितम्बर ५५?
आज आचार्यश्री की सल्लेखना का ३६ वाँ दिन था और आचार्यश्री की इस लोक की जीवनलीला का अंतिम दिन।
आचार्यश्री जाग्रत अवस्था में सिद्धोहम का ध्यान करते रहे। साढ़े ६ बजे गंधोदक ले जाकर क्षुल्लक सिद्धसागरजी ने कहा, महाराज अभिषेक का जल है, महाराज ने हूँ में उत्तर दिया और गंधोदक लगा दिया गया। महाराज की आत्मा सिद्धोहम का ध्यान करते हुए ६ बजकर ५० मिनिट पर स्वर्गारोहण कर गई।
? स्वाध्याय चारित्र चक्रवर्ती ग्रन्थ का ?
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