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चिंतपूर्ण शरीर स्थिति - अमृत माँ जिनवाणी से - ११९


Abhishek Jain

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?   अमृत माँ जिनवाणी से - ११९  ?


             "चिंतापूर्ण शरीर स्थिति"


              तारीख १३ सितम्बर को सल्लेखना का ३१ वां दिन था। उस दिन आचार्यश्री शान्तिसागरजी महाराज के शरीर की स्थिति बहुत ही चिंताजनक हो गई और ऐसा लगने लगा कि अब इस आध्यात्मिक सूर्य के अस्तंगत होने में तनिक भी देर नहीं है। 

        यह सूर्य अब क्षितिज को स्पर्श कर चूका है। भूतल पर से आपका दर्शन लोगों को नहीं होता; हाँ शैल शिखर से उस सूर्य की कुछ-२ ज्योति दिखाई पड़ रही है। उस समय महाराज की स्थिति अद्भुत थी। उनकी सारी ही बातें अद्भुत रहीं हैं। जितने काम उस विभूति के द्वारा हुए वे विश्व को चकित ही करते थे।

        तारीख १३ को महाराज का दर्शन दुर्लभ बन गया। हजारों यात्री आए थे, किन्तु उनकी शरीर स्थिति को देखकर जन साधारण को दर्शन लाभ मिलना अक्षम्य दिखने लगा। उस दिन बाहर से आगत टेलिफोनो के उत्तर में हमने यह समाचार भेजा था- "महाराज के शरीर की प्राकृति अत्यंत क्षीण है दर्शन असंभव है। नाड़ी कमजोर है। भविष्य अनिश्चित है। आसपास की पंचायतों को तार या फोन से सुचना दे दीजिये, इससे दर्शनार्थी लोग यहाँ आकर निराश ना हों।"

       अन्य लोगों ने भी आसपास समाचार भेज दिए कि अब यह धर्म सूर्य शीध्र ही लोकान्तर को प्रयाण करने को है। जैसे-२ समय बीतता था, वैसे-२ दूर-दूर के लोग अहिंसा के श्रेष्ठ आराधक के दर्शनार्थ आ रहे थे। बहुभाग तो ऐसे लोगों का था, जिनके मन में दर्शन के प्रति अवनर्णीय ममता थी। कारण, उन्होंने जीवन में एक बार भी इन लोकोत्तर सधुराज की प्रत्यक्ष वंदना न की थी। उस समय जनता में अपार क्षोभ बड़ रहा था।


?३१ वां दिन - १३ सितम्बर १९५५?

              कल बाहर के कमरे में आचार्यश्री ४-५ घंटे लेटे रहे,  जिसके कारण आज काफी कष्ट रहा। नाडी की गति अत्यंत मंद होने पर भी सारा समय गुफा में आत्मध्यान में व्यतीत किया।

       आचार्यश्री की साधना में कोई विघ्न ना हो, इसलिए देशभूषण-कुलभूषण मंदिर भी दर्शनों के लिए बंद रहा। आचार्यश्री गुफा से बाहर नहीं आये, अतः जनता दर्शन लाभ न कर सकी।


? स्वाध्याय चारित्र चक्रवर्ती ग्रन्थ का ?

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