अंतिम दर्शन - अमृत माँ जिनवाणी से - १२०
? अमृत माँ जिनवाणी से - १२० ?
"अंतिम दर्शन"
पिछले प्रसंग में देखा दूर-२ से लोग अहिंसा के श्रेष्ठ आराधक के दर्शनार्थ आ रहे थे। उस समय जनता में अपार क्षोभ बढ़ रहा था।
कुछ बेचारे दुखी ह्रदय से लौट गए और कुछ इस आशा से कि शायद आगे दर्शन मिल जाएँ ठहरे रहे। अंत में सत्रह सितम्बर को सुबह महाराज के दर्शन सब को मिलेंगे, ऐसी सूचना तारीख १६ की रात्री को लोगों को मिली।
बड़े व्यवस्थित ढंग से तथा शांतिपूर्वक एक-एक व्यक्ति की पंक्ति बनाकर लोगों ने आचार्यश्री के दर्शन किये।
महाराज तो आत्मध्यान में निमग्न रहते थे। वास्तव में ऐसा दिखता था मानों वे लेटे-लेटे सामायिक कर रहे हों। बात यथार्थ में भी यही थी।
?३२ वाँ दिन - १४ सितम्बर १९५५?
आज सल्लेखना का ३२ वाँ दिन और जल न ग्रहण करने को १० वाँ दिन हो जाने पर भी आचार्यश्री की आत्मसाधना और ध्यान बराबर जारी रहा। आज के दिन उस्मानावाद के कलेक्टर मय पुलिस अफसरान के आचार्यश्री के दर्शनार्थ पधारे थे। शरीर की कमजोरी अधिक बढ़ जाने के कारण जनता को आज आचार्यश्री के दर्शन नहीं कराये गए।
? स्वाध्याय चारित्र चक्रवर्ती ग्रन्थ का ?
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