तेजपुंज शरीर - अमृत माँ जिनवाणी से - ११८
? अमृत माँ जिनवाणी से - ११८ ?
"तेजपुञ्ज शरीर"
पूज्य शान्तिसागरजी महाराज का शरीर आत्मतेज का अद्भुत पुञ्ज दिखता था। ३० से भी अधिक उपवास होने पर देखने वालों को ऐसा लगता था, मानों महाराज ने ५ - १० उपवास किये हों। उनके दर्शन से जड़वादी मानव के मन में आत्मबल की प्रतिष्ठा अंकित हुए बिना नहीं रहती थी।
देशभूषण-कुलभूषण भगवान के अभिषेक का जब उन्होंने अंतिम बार दर्शन किया था, उस दिन शुभोदय से महाराज के ठीक पीछे मुझे (लेखक को) खड़े होने का सौभाग्य मिला था।
मै महाराज के सम्पूर्ण शरीर को ध्यान से देख रहा था।उनके शरीर के तेज की दूसरों के शरीर से तुलना करता था। तब उनकी देह विशेष दीप्तियुक्त लगती थी। मुखमंडल पर तो आत्मतेज की ऐसी ही आभा दिखती थी, जिस प्रकार सूर्योदय के पूर्व प्राची दिशा में विशेष प्रकाश दिखता है।
उनके हाथ, पैर, वक्षःस्थल उस लंबे उपवास के अनुरूप क्षीण लगते थे, फिर भी दो माह से महान तपस्या के कारण क्षीणतायुक्त शरीर और उस पर यह महान सल्लेखना का भार, ये तब अद्भुत सामग्री का विचार, आत्म-शक्ति और उस तेज को स्पष्ट करते थे।
? ३० वां दिन - १२सितम्बर ५५ ?
आज सल्लेखना के ३० वें और जल न ग्रहण करने के ८ वें दिन आचार्यश्री के शरीर की हालत चिंताजनक रही। फिर भी जनता के विशेष आग्रह से आचार्य महाराज के दर्शन की छूट दे दी गई।
आचार्य महाराज बाहर कमरे में दिन के १ बजे से ५ बजे तक लेटे हुए आत्मचिंतन करते रहे और ५ - ६ हजार जनता ने आचार्यश्री के पुनीत दर्शनों का लाभ लिया।
आचार्यश्री के शरीर की हालत अत्यंत नाजुक तथा नाडी की गति अत्यंत मंद रही। आँखों की ज्योति क्षीण होने के अतिरिक्त और किसी भी प्रकार की शारीरिक वेदना न होने के कारण आत्म ध्यान में लीन रहे।
? स्वाध्याय चारित्र चक्रवर्ती ग्रन्थ का ?
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