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?कर्नाटक पूर्वज भूमि - अमृत माँ जिनवाणी से - १६९


Abhishek Jain

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?    अमृत माँ जिनवाणी से - १६९    ?


             "कर्नाटक पूर्वज भूमि"


           एक दिन पूज्य शान्तिसागरजी महराज से उनके धार्मिक परिवार के विषय में चर्चा चलाई। सौभाग्य की बात है कि उस समय उनके पूर्वजों के बारे में भी कुछ बातें विदित हुई।

          महराज ने बताया था कि उनके आजा का नाम गिरिगौड़ा था। उनके यहाँ सात पीढ़ी से पाटील का अधिकार चला आता है। पाटिल गाँव का मालिक/रक्षक होता है। उसे एक माह पर्यन्त अपराधी को दण्ड देने तक का अधिकार रहता है।

      महराज ने यह भी बताया था कि हमारे पूर्वज सभी धार्मिक जमीदार थे। मुनितुल्य उनकी धर्म में निष्ठा रहती थी। चार ग्राम की पटिली थी। पहले हमारे पूर्वज कर्नाटक में रहते थे। वहाँ से टीपू के कारण भोज ग्राम में आए थे।

       मैंने पूंछा- "महराज ! व्यापार का कार्य आप कैसे चलाते थे।"

      महराज- "हम कपडे की दुकान पर बैठते थे। सब काम पूर्ण सत्यता के साथ करते थे। बचपन से ही हमारी सच बोलने की आदत थी। अन्याय तथा अनीति से घृणा रहती थी।"

      मैंने पूंछा- "महराज ! व्यापार में आपका मन तो लगता होगा ?"

      महराज- "हमारा मन सिवाय धर्म ध्यान के दूसरे कामों में नहीं लगता था। हम व्यापार को निरपेक्ष भाव से करते थे।"

      मैंने पूंछा- "इसका क्या कारण ?"

      महराज- "जब हमारा निश्चय था कि घर छोड़कर हमें वन में जाना है, तब उनके तल्लीनता और आसक्ति करने का क्या प्रयोजन ? इससे हम उदास भाव से काम करते थे।"


?  स्वाध्याय चारित्र चक्रवर्ती ग्रन्थ का  ?

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