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?लोकस्मृति - अमृत माँ जिनवाणी से - १७८


Abhishek Jain

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☀जय जिनेन्द्र बंधुओं,

            अब आपके सम्मुख "चारित्र चक्रवर्ती ग्रंथ" के लोकस्मृति नामक अध्याय से सामग्री प्रस्तुत की जा रही है। पूज्य शान्तिसागरजी महराज के गृहस्थ जीवन की विभिन्न बातों के बारे में लेखक को जानकारी प्राप्त होना अत्यन्त कठिन कार्य था। 

      इस और आगे के प्रसंगों मे आपको यही जानकारी प्राप्त होगी की लेखक ने पूज्य शान्तिसागरजी महाराज के जीवन की विभिन्न जानकारियाँ कैसे जुटाई व वह जानकारियाँ क्या थीं।

?    अमृत माँ जिनवाणी से -  १७८    ?


                   "लोकस्मृति"


        पूज्य आचार्यश्री शान्तिसागरजी महराज के साधु बनने के पूर्व का जीवन किस प्रकार का रहा, इस विषय मे उन निस्पृह तथा तत्वदर्शी महान आत्मा से विषय सामग्री प्राप्त करना असंभव देख, हमने उनकी निवास-भूमि आदि में विद्यमान व्यक्तियों के पास पहुँचकर सन् १९५२ में प्रत्यक्ष चर्चा की एवं विविध प्रश्नों के फलस्वरूप कुछ महत्वपूर्ण बातें अवगत की।

       जानकारी देने वालों में मुख्य स्थान आचार्य महराज के ज्येष्ठ बंधु मुनि १०८ श्री वर्धमान सागरजी महराज से प्राप्त सामग्री का है, जो बड़ी कठिनता और सतप्रयत्न से प्राप्त से प्राप्त हुई।

       भोजग्राम के वृद्ध लोगों से वर्धमान स्वामी के सौरभ सम्पन्न जीवन की वार्ता विदित हुई। प्रमाणिकता, लोकोपकार, दीन-दुखी एवं सत्पात्रों की सेवा-प्ररायण् आदि उनके विशेष गुण थे। उनका स्वभाव बड़ा मधुर था। उनके संपर्क में आते ही हमे ऐसा लगा मानों हम हिमालय के समीप आ गए हों।

          दो दिन उनके पास रहकर, जो कुछ सामग्री एकत्रित की जा सकी, वह इस प्रकार है। वे तत्वदर्शी, वीतरागी, महामुनि थे, अतः कुटुम्ब की चर्चा करना उनकी आत्मा को अनुकूल नहीं लगता था, फिर भी सौभाग्य से जो कुछ भी अल्प सामग्री ज्ञात हुई, वह अत्यंत महत्व की है।


?  स्वाध्याय चारित्र चक्रवर्ती ग्रंथ का  ?

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