?गुणराशी - अमृत माँ जिनवाणी से - १७२
? अमृत माँ जिनवाणी से - १७२ ?
"गुणराशि"
ग्राम के कुछ वृद्धों से पूज्य आचार्यश्री शान्तिसागरजी महराज के बाल्य जीवन आदि के विषय में परिचय प्राप्त किया, ज्ञात हुआ कि ये पुण्यात्मा महापुरुष प्रारम्भ से ही असाधारण गुणों के भंडार थे। इनका परिवार बड़ा सुखी, समृद्ध, वैभवपूर्ण तथा जिनेन्द्र का अप्रतिम भक्त था।
इनकी स्मरण शक्ति जन साधारण में प्रख्यात थी। इन्होंने माता सत्यवती से सत्य के प्रति अनन्य निष्ठा और सत्यधर्म के प्रति प्राणाधिक श्रद्धा का भाव प्राप्त किया था, ऐसा प्रतीत होता है।
अपने प्रभावशाली, पराक्रमी, अत्यंत उदार एवं प्रमाणिक जीवन वाले पूज्य पिता श्री भीमगौड़ा से इन्होंने वह दृढ़ता और गंभीरता प्राप्त प्राप्त की थी, जो इन्हें विपत्ति और संकट के समय भीम के समान साहस संपन्न रखती आई है।
इन लोगों ने बताया कि इनमें बच्चों की विवेकहीन जघन्य प्रवृत्तियाँ नहीं पाई जाती थी। बचपन से ही इनके चिन्ह इस प्रकार के थे कि ये लोकोत्तर महापुरुष बनेंगे इसलिए ये अलौकिक बालक के रूप में प्रत्येक नर नारी के मन को अपनी ओर आकर्षित करते थे।
जो भी इन्हे देखता था वह उन्हें गंभीरता, करुणा, पराक्रम और प्रतिभा का पुँज पाता था। इनका शरीर अत्यंत निरोग, सुदृढ़ व् शक्ति संपन्न था।
इनकी ऐसी कोई चेष्ठा नही नहीं थी, जिसे बाल कहकर क्षमा किया जाए।बाल्यकाल में ही इनके जीवन में वृद्धों सदृश गंभीरता और विवेक पाया जाता था। इससे यह प्रतीत होता था कि ये जन्म जन्मांतर के महापुरुष इस भरतखंड के लोगों को धर्मामृत पान कराने के लिए ही बाल शरीर धारण कर भव्य भोज भूमि में आविर्भूत हुए हैं और सम्पूर्ण भावों का कल्याण करने वाले वीरशासन के धर्मचक्रधारी सत्पुरुष हैं।
? स्वाध्याय चारित्र चक्रवर्ती ग्रन्थ का ?
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