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?आचार्यश्री व समाजोत्थान - अमृत माँ जिनवाणी से - १७७


Abhishek Jain

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☀जय जिनेन्द्र बंधुओं,

           प्रस्तुत प्रसंग में लेखक ने सामाजिक सुधार हेतु पूज्य शांतिसागरजी महराज द्वारा प्रेरणा देने के सम्बन्ध में पूज्यजी की विशिष्ट सोच को व्यक्त किया है।

       प्रस्तुत प्रसंग वर्तमान परिपेक्ष्य में भी अति महत्वपूर्ण है क्योंकि वर्तमान में अनेको साधु भगवंतों द्वारा समाज में बड़ रही विकृतियों से बचने तथा सामाजिक कुप्रथाओं को बंद करने की प्रेरणा दी जाती है, उस सम्बन्ध में भी कुछ लोग गलत सोच सकते हैं।

?    अमृत माँ जिनवाणी से - १७७    ?


           "आचार्यश्री व् समाजोत्थान"


           पूज्य आचार्यश्री शान्तिसागरजी महराज प्रेरणा से बहुत सारे समाज उत्थान के कार्य भी सम्पादित हुए। कोई व्यक्ति यह कहे इनको तो आत्मा की चर्चा करनी चाहिए थी, इन सामाजिक विषयों में साधुओं को पड़ने की क्या जरुरत है? यह भी कहें कोई-कोई साधु अपने को उच्च स्तर का बताने के उद्देश्य से सामाजिक हीनाचार (जैसे विधवा विवाहादि) का विरोध नहीं करते हैं और जनता की प्रशंसा की अपेक्षा करते पाये जाते हैं।

       पूज्य आचार्यश्री शान्तिसागरजी महराज का ऐसी  सोच को समर्थन नहीं था। इस विषय में उनका चिंतन इस प्रकार था-

        जिन समाज हित की बातों का धर्म से सम्बन्ध है, उनके विषय में यदि प्रभावशाली साधु सन्मार्ग का दर्शन ना करें, तो स्वच्छंद आचरण रूपी बाघ धर्मरूपी बछड़े का भक्षण किए बिना न रहेगा।

        इन सन्मार्ग के प्रभावक प्रहरियों के कारण ही समाज का शील और संयमरूपी रत्न कुशिक्षा तथा पाप-प्रचाररूपी डाकुओं से लुटे जाने से बच गया।


?  स्वाध्याय चारित्र चक्रवर्ती ग्रन्थ का  ?

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