?दीर्घ जीवन का रहस्य - अमृत माँ जिनवाणी से - १६५
? अमृत माँ जिनवाणी से - १६५ ?
"दीर्घजीवन का रहस्य"
पूज्य आचार्यश्री शान्तिसागरजी महराज के योग्य शिष्य मुनि श्री १०८ वर्धमान सागरजी महराज जो गृहस्थ जीवन में पूज्य शान्तिसागरजी महराज के बड़े भ्राता भी थे तथा वर्तमान में ९२ वर्ष की अवस्था में भी व्यवस्थित मुनिचर्या का पालन कर रहे थे, ने प्रसंग वश बताया-
"संयमी जीवन दीर्घाआयु का विशेष कारण है। हम रात को ९ बजे के पूर्व सो जाते थे और तीन बजे सुबह जाग जाया करते थे। ३५ वर्ष की अवस्था में हमने ब्रम्हचर्य व्रत ले लिया था। हमारे शरीर में कोई रोग नहीं हुआ।
गृहस्थ अवस्था में हम एक दिन में ४५ मील बिना कष्ट के सहज ही चले जाते थे। २५ वर्ष की अवस्था में हम भोज से ५.३० बजे सबेरे चलकर शाम को ४५ मील दूरी पर स्थित तेरदल ग्राम में जाकर भोजन करते थे।
पहले हमारे शरीर का चमड़ा इतना कड़ा था कि शरीर से चमड़ा नहीं खिचता था, लेकिन अब तो वृद्धावस्था आ गई है।
आज के विटामिन भक्तों तथा डॉक्टरों के उपासकों को साधुराज के दिव्य जीवन से शिक्षा लेना चाहिए। निरोगता का बीज परिश्रम, ब्रम्हचर्य, परिमित आहार-विहार में है।
? स्वाध्याय चारित्र चक्रवर्ती ग्रन्थ का ?
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